उसमें जयधवलाकार ने चार अघातियाकर्मों (आयु, नाम, गोत्र, और वेदनीय) के क्षय का विधान किया है।
12.
लोग समझते हैं कि हमें वेदनीय है, लेकिन हमें वेदनीय स्पर्श नहीं करता, तीर्थंकरों को भी स्पर्श नहीं करता।
13.
लोग समझते हैं कि हमें वेदनीय है, लेकिन हमें वेदनीय स्पर्श नहीं करता, तीर्थंकरों को भी स्पर्श नहीं करता।
14.
हमें असर ही नहीं होता कुछ, लोगों को ऐसा लगता है कि हमें वेदनीय कर्म आया, अशाता वेदनीय आया।
15.
हमें असर ही नहीं होता कुछ, लोगों को ऐसा लगता है कि हमें वेदनीय कर्म आया, अशाता वेदनीय आया।
16.
कर्म के आठ भेद कहे गए हैं यथा-ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र तथा अन्तराय।
17.
आचार्य विमदसागर महाराज ने कहा कि जीवन में जब असाता वेदनीय कर्म का उदय होता है तो कर्म के सामने घुटने टेकने पड़ते हैं।
18.
यह (वध आदि) देवों के प्रिय से अत्यंत वेदनीय (दु: खदायी) और गुरु (भारी) माना गया है।
19.
ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय वेदनीय मोहनीय आयुकर्म नामकर्म गोत्रकर्म अन्तराय कर्म मोक्षप्राप्ति के लिए आवश्यक है कि मनुष्य अपने पूर्वजन्म के कर्मफल का नाश करे और इस जन्म में किसी प्रकार का कर्मफल संग्रहीत न करे।
20.
चौपड़ा ने बताया कि 13 नवंबर तक श्री पाश्र्वनाथ पंच कल्याणक पूजा, 14 को श्री अंतरायकर्म निवारण पूजा, 15 को श्री वेदनीय कर्म निवारण पूजा व 16 नवंबर को नव्वाणुप्रकार की पूजा रखी गई है।