अपनी पुस्तक ‘ वैज्ञानिक भौतिकवाद ' एवं ‘ दर्शन-दिग्दर्शन ' में इस सम्बन्ध में उन्होंने सम्यक् प्रकाश डाला।
12.
वैज्ञानिक भौतिकवाद का जन्म संसार को समझने और उसे बदलने के लिए, मानवजीवन को सुखी बनाने के लिए हुआ.
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उनकी समझ में वैज्ञानिक भौतिकवाद जगत के स्वरूप की व्याख्या नहीं करता, न वह ज्ञान की समस्या हल करता है.
14.
व्यवहार और परिवर्तन पर इस प्रकार बल देने का यह अर्थ नहीं है कि वैज्ञानिक भौतिकवाद चिंतन को, बौद्धिक क्रिया को नगण्य समझता है.
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प्रतीति में भी तो होता है; फिर कैसे जानें, कौन-सी प्रतीति भ्रम है और कौन-सी वास्तविक ज्ञान? वैज्ञानिक भौतिकवाद व्यवहार पर बल देता है.
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उन्हीं के बीच रहते हुए ग्राम्शी ने हीगेल के द्वंद्ववाद, फायरबाख की धर्म-संबंधी अवधारणा तथा मार्क्स के वैज्ञानिक भौतिकवाद का गहरा अध्ययन किया.
17.
वैज्ञानिक भौतिकवाद एक तरह से कठिन विषय है, मगर राहुलजी ने भारतीयपंरपरा से बहुत सारे उदाहरण देकर इस विषय को सुबोध व सुगम बना दिया है.
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इस दौरान उन्होंने अपनी पुस्तकें-“ दर्शन-दिग्दर्शन ”, “ विश्व की रूपरेखा ”, “ मानव समाज ”, “ वैज्ञानिक भौतिकवाद ”, “ बौद्धदर्शन ” लिखीं।
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वैज्ञानिक भौतिकवादी सृष्टि विकास के सूत्रों के लिए प्राय: डारविन पर निर्भर थे, लेकिन आधुनिक भौतिक विज्ञान ऋग्वेद के करीब है, वैज्ञानिक भौतिकवाद आधुनिक भौतिक विज्ञान से दूर है।
20.
20 दिन में 20 पृष्ठ प्रतिदिन लिख कर ‘ विश्व की रूप-रेखा ', 36 दिन में ‘ मानव-समाज ', फिर ‘ दर्शन-दिग्दर्शन ' और 12 दिन में ‘ वैज्ञानिक भौतिकवाद ' ।