कौन-सी पत्रिका व्यक्तित्वहीन है या दिशाभ्रष्ट बाजारू इस ओर ज्यादा गौर नहीं करता था.
12.
उसे मातहत बनाने, व्यक्तित्वहीन बनाने के सभी प्रयासों के लिए कोई जगह सभ्य कहलानेवाले समाज में नहीं होना चाहिए।
13.
आज भारत की अंग्रेजी हमें अपने ही देश में व्यक्तित्वहीन बनाती है और साथ ही हमें विश्व-बाजार में विश्व-नागरिक बनाती है।
14.
खूब सारे खोखले और व्यक्तित्वहीन लोग आजकल कई सारे गलियारों में ऎसे पसरे हुए हैं जैसे कि वे ही दुनिया के सिकंदर हों।
15.
सामान्य स्वभाव का आदमी ठंडे-ठंडे जिम्मेदारियाँ भी निभा लेता, रोते-गाते दुनिया से तालमेल भी बिठा लेता और एक व्यक्तित्वहीन नौकरीपेशा आदमी की तरह जिंदगी साधारण सन्तोष से गुजार लेता।
16.
इस तरह के ‘ व्यक्तित्वहीन ' नामों को किसी भी दूसरे नाम से अदल-बदल किया जा सकता है, क्योंकि नाम के अतिरिक्त उनमें कुछ भी नहीं होता।
17.
साहित्य के द्वार पर ही मरने-जीने की भावनावश मैंने ' नीहारिका', 'माया', 'नई सदी' जैसी व्यक्तित्वहीन और प्रकाशन की दृष्टि से सुविधाजनक पत्रिकाओं में लिखना बिलकुल बंद कर दिया.
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सामान्य स्वभाव का आदमी ठंडे-ठंडे जिम्मेदारियाँ भी निभा लेता, रोते-गाते दुनिया से तालमेल भी बिठा लेता और एक व्यक्तित्वहीन नौकरीपेशा आदमी की तरह जिंदगी साधारण सन्तोष से गुजार लेता।
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साहित्य के द्वार पर ही मरने-जीने की भावनावश मैंने ' नीहारिका', 'माया', 'नई सदी' जैसी व्यक्तित्वहीन और प्रकाशन की दृष्टि से सुविधाजनक पत्रिकाओं में लिखना बिलकुल बंद कर दिया.
20.
कहीं व्यवसायिक पत्रों द्वारा इसके व्यक्तित्वहीन होने की बात कही जाती है, तो कहीं इसे स्थिति के समग्र प्रभाव को अभिव्यक्त करने में अक्षम करार दिया जा रहा है।