सबसे बढ़कर इस बात की आवश्यकता है कि इस तरह की व्यक्तिपरकता से सावधान रहा जाय ; क्योंकि इसी तरह की चूक से विभिन्न अवसरों पर स्थिति का सही ढंग से मूल्यांकन करने में रुकावटें पैदा हुई हैं।
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यह व्यक्तिपरकता का लॉजिक स्त्री को प्रजनन के लिए इस न केवल बढ़ती अपितु सुरसा सा मुँह बाए जनसंख्या के जमाने में भी दिया जाना कुछ अति नहीं है क्या? कुछ अभारतीय सी (?) घुघूती बासूती
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३-फिर यौनिक सम्बन्ध निर्थक नहीं हो जायेगें? ४-या यौनिक सम्बन्ध फिर भी रहेगें क्योंकि उनकी एक गैर प्रजनात्मक जरूरत भी रहती है नर नारी को? ५-क्या ऐसे समाज में निहायत व्यक्तिपरकता हावी नहीं जायेगी?
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हालांकि अंतिम विश्लेषण में इस बात को ध्यान में रखते हुए कि उस पाठ की रचना एक पुरुष ने दूसरे पुरुष को मुख्य रूप से सीख देने के लिए की थी, यौन क्रीड़ा में नारी की व्यक्तिपरकता को बढ़ावा देने का आशय अंतत.
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बच्चों की लोरिया हैं, जमाने से टकराने और कुरीतियों को चुनौती देने की बाते हैं, सकारात्मक मूल्यों की पक्षधरता है, परम्परा और यथास्थिति की ग़ुलामी का प्रतिकार है, प्रकृति और मनुष्य के संबंधों का बेलगाम वर्णन है, सेल्फरेस्पेक्ट और व्यक्तिपरकता की गूंज है।
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लेकिन भारतीय राजनीतिक संस्कृति में जिस प्रकार के दलों का उभार हुआ है उनमें सभी प्रकार की सकारात्मक विविधताओं के बावजूद जो नकारात्मक समरूपता रही है, वह है नेतृत्व के स्तर पर व्यक्तिपरकता और चुनावेत्तर अवधि में जनता से पूरी तरह से बिलगाव।
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लेकिन भारतीय राजनीतिक संस्कृति में जिस प्रकार के दलों का उभार हुआ है उनमें सभी प्रकार की सकारात्मक विविधताओं के बावज़ूद जो नकारात्मक समरूपता रही है, वह है नेतृत्व के स्तर पर व्यक्तिपरकता और चुनावेत्तर अवधि में जनता से पूरी तरह से बिलगा व.
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हाँ और व्यक्तिपरकता की चिन्ता तब तो नहीं होती जब पुरुष अपनी पसन्द की पढ़ाई करता है और पिताजी की दुकान, खेत या ज्योतिषी या जजमानी का धन्धा देखने की जगह बड़ी बड़ी नौकरियों के लालच में घर से हजारों मील दूर चले जाता है।
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ऐसे में मुझे स्वयं काफी-कुछ सीखने का अवसर मिल रहा है जो मैं लोगों से इस उद्देश्य से साझा करना चाहता हूँ कि मेरे स्वयं के अनुभव यह बताएँगे कि कैसे यदि हम चाहें तो प्राधिकारी की व्यक्तिपरकता को कम करते हुए उसके स्थान पर निष्पक्षता और वस्तुनिष्टता को प्रभावी बना सकते हैं.
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इस हेतु (१) अत्याधिक संयोग एवं व्यक्तिपरकता के बिन्दु का लोप (२) रटने के महत्व मेंकमी (३) शिक्षा की पूरी अवधि में की गई शैक्षिक एवं शिक्षेतर बातों कानिरन्तर व्यापक मूल्यांकन (४) परीक्षा संचालन में सुधार (५) शैक्षिकसामग्रियों एवं विधियों में सहृवर्ती परिवर्तनों की शुरूआत (६) माध्यमिकस्तर से क्रमिक रूप में सेमेस्टर प्रणाली का प्रचलन तथा अंकों के स्थानपर श्रेणियों का उपयोग.