यदि शराब पीना, मांस खाना, व्यभिचार करना, हिंसक बनना, कर्ज लेकर ऐश करना आदि को पश्चिमी समाज में बुरा नहीं माना जाता तो हम उसे बुरा क्यों मानें? आधुनिक दिखने, प्रगतिशील होने, सेकुलर बनने, भद्र लगने के लिए जो भी टोटके करने पड़ें, वे हम करें।
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त्यागी जी जिसे व्यभिचार करना ही है तो वो कोई ना कोई बहाना और जगही ढूँढ ही लेगा चाहे वो गरबा डांडिया हो या कोई मेला, इसके लिए पूरे डांडिया को दोषी तहराना उचित नही है बदलाव सभी पड़द्तियो मे होते रहते है और आधुनिकता भी बहूत से धार्मिक पद्दित्यो मे प्रवेश होती जा रही है.
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आपको शराब पीनी है, व्यभिचार करना है, सूद लेना है, दहेज लेना है, लड़की के बाप को हल्का दर्जा देना है, रास रचाना है, जुआ खेलना है या कोई और जुर्म करना है तो उसे कीजिए और कहिए कि मैं कर रहा हूं क्योंकि यह मेरा नज़रिया और दर्शन है जैसे कि समलैंगिक और लेस्बियन कहते हैं ।
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व्यापक दृष्टि से त्रिपिटक के महत्वपूर्ण ग्रंथ सुत्त निपात के पराभव सुत्त में मनुष्य के पतन के जो अमंगल, अनैतिक एवं अशुभ कर्म बताए हैं, वे सभी कर्म भ्रष्टाचार में वृद्धि करते हैं, उदाहरण के लिए व्यभिचार करना, शराब पीना, जुआ-सट्टा खेलना, झूठ बोलना, गैर कानूनी माध्यम से धन संचय करना आदि भ्रष्टाचार की परिधि में आते हैं।
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और जब प्रायोजकों में दारु कंपनियाँ भी शामिल हों तो बहकी बहकी बातों से बचना भी मुश्किल होता है इसलिए इनको दोष नहीं देना चाहिए क्योंकि जब भी ऐसे लोग अपने सोचने का धंधा शुरू करते हैं तो झोले के अलावा साथ में कुछ नहीं होता, उस झोले से थिंक फेस्ट तक की यात्रा में बहुत कुछ कुर्बान करना पड़ता है, जिसमें सबसे पहले विचार के साथ व्यभिचार करना भी शामिल है।
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स्वजाति, स्वधर्म और स्वराष्ट्र के विरुद्ध विरोधी शक्तियों का साधन बनकर कार्य करना उतना ही नीचता और पाप-पूर्ण कार्य है जितना स्वयं अपनी माता के साथ व्यभिचार करना तथा उसे विरोधियों के हाथों में व्यभिचार के लिए सौंप देना | राजपूत जाति को इस प्रकार के अधम जाति-द्रोही और पापी व्यक्तियों को कभी भी क्षमा नहीं करना चाहिए | आवश्यकता इस बात की है कि राजपूत चरित्र के इस कालिमामय अंश तमोगुणी व्यक्तिवाद को संस्कारों द्वारा सतोगुणी जातिय-भाव में बदला जाय |
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इस वचन से, और भी बहुत जगह शास्त्र में आज्ञा है, सो जो विधवा विवाह करती हैं उनको पाप तो नहीं होता पर जो नहीं करतीं उनको पुण्य अवश्य होता है, और व्यभिचारिणी होने का जो कहो सो तो विवाह होने पर भी जिस को व्यभिचार करना होगा सो करै ही गी जो आप ने पूछा वह हमारे समझ में तो यों आता है परन्तु सच पूछिए तो स्त्री तो जो चाहे सो करै इन को तो दोष ही नहीं है-‘ न स्त्री जारेण दुष्यति ' ।