संपदाओं आदि के अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधियों की व्यावृत्ति-5 [(1) अनुच्छेद 13 में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी,-
12.
(ग) जहाँ एक काल में दो समुच्चय से प्राप्त हों और उनमें एक की व्यावृत्ति (निवृत्ति) करना ही जिसका फल हो उसे परिसंख्या विधि कहते हैं।
13.
अत: अभाव के लक्षण में असमवायत्वे सति कहने से सभी पदार्थों की और ' असमवाय ' कहने से स्वयं अभाव के समवायत्व की व्यावृत्ति हो जाती है।
14.
मुनि विश्रांत सागर महाराज ने शनिवार को पाŸवनाथ बिहारी भवन मे धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि साधुओं की व्यावृत्ति करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
15.
(ग) जहाँ एक काल में दो समुच्चय से प्राप्त हों और उनमें एक की व्यावृत्ति (निवृत्ति) करना ही जिसका फल हो उसे परिसंख्या विधि कहते हैं।
16.
पृथ्वी आदि में ' द्रव्यम् ' इस प्रकार का अनुवृत्ति प्रत्यय होने से द्रव्य को सामान्य और ' द्रव्यम् न गुण:, न कर्म, आदि व्यावृत्ति प्रत्यय का कारण होने से उसे विशेष भी कहते हैं और इस प्रकार द्रव्य एक साथ परस्पर विरुद्ध सामान्य-विशेष रूप माना गया है।
17.
व्यावृत्ति:-इस नियमावली में किसी बात का कोई प्रभाव ऐसे आरक्षण और अन्य रियायतों पर नहीं पड़ेगा जिनका इस सम्बन्ध में सरकार द्वारा समय-समय पर जारी किये गये आदेशों के अनुसार अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य विशेष श्रेणियों के व्यक्तियों के लिए उपलब्ध किया जाना अपेक्षित हो।
18.
इस संदर्भ में एक प्रश्न यह भी उपस्थित होता है कि यदि एक विशेष का दूसरे विशेष से भेद स्वयं ही हो जाता है तो एक परमाणु का दूसरे परमाणु से भेद भी स्वयं ही क्यों नहीं हो जाता? इस शंका का समाधान प्रशस्तपाद ने यह कह कर कर दिया कि विशेष का तो स्वभाव ही व्यावृत्ति है, जबकि परमाणु का स्वभाव व्यावृत्ति नहीं है।
19.
इस संदर्भ में एक प्रश्न यह भी उपस्थित होता है कि यदि एक विशेष का दूसरे विशेष से भेद स्वयं ही हो जाता है तो एक परमाणु का दूसरे परमाणु से भेद भी स्वयं ही क्यों नहीं हो जाता? इस शंका का समाधान प्रशस्तपाद ने यह कह कर कर दिया कि विशेष का तो स्वभाव ही व्यावृत्ति है, जबकि परमाणु का स्वभाव व्यावृत्ति नहीं है।
20.
पूर्वानुराग का दश कामदशाएँ-अभिलाष, चिंता, अनुस्मृति, गुणकीर्तन, उद्वेग, विलाप, व्याधि, जड़ता तथा मरण (या अप्रदश्र्य होने के कारण उसके स्थान पर मूच्र्छा)-मानी गई हैं, जिनके स्थान पर कहीं अपने तथा कहीं दूसरे के मत के रूप में विष्णुधर्मोत्तरपुराण, दशरूपक की अवलोक टीका, साहित्यदर्पण, प्रतापरुद्रीय तथा सरस्वतीकंठाभरण तथा काव्यदर्पण में किंचित् परिवर्तन के साथ चक्षुप्रीति, मन: संग, स्मरण, निद्राभंग, तनुता, व्यावृत्ति, लज्जानाश, उन्माद, मूच्र्छा तथा मरण का उल्लेख किया गया है।