४. व्यास शैली-द्विवेदी जी ने जहाँ अपने विषय को विस्तारपूर्वक समझाया है, वहाँ उन्होंने व्यास शैली को अपनाया है।
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इन कविताओं को पढ़कर सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की ' काठ की घंटियाँ ' सहज ही स्मरण हो आती है जिनमें परोक्ष संवाद था, वक्रोक्ति व्यास शैली थी और थी मध्यवर्ग की बुर्जुवाई को तोड़ती हुई सहज और भरपूर प्रगतिशीलता।