इससे सिद्ध होता है कि शक जाति के लोग भी शिव का पूजन करते थे।
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मन्दिर की इस प्रमुख बूटधारी मूर्ति की पूजा विशेष तौर पर शक जाति करती है।
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मन्दिर में प्रमुख मूर्त बूटधारी आदित्य (सूर्य) की है, जिसकी आराधना शक जाति में विशेष रुप से की जाती है।
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कितने ही पश्चिमी विद्वानों का मत है कि महाशकद्वीप में रहने वाली शक जाति वस्तुतः भिन्न-भिन्न भाषाएं बोलनेवाली अनेक जातियां थीं।
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मन्दिर में प्रमुख मूर्ति बूटधारी आदित्य (सूर्य) की है, जिसकी आराधना शक जाति में विशेष रूप से की जाती है.
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कुमाऊँ में शक संवत् के प्रचलन एवं अल्मोड़ा में कोसी के समीप स्थित कटारमल सूर्य मंदिर के अस्तित्व से इस संभावना की पुष्टि होती है कि किरात, राजी, नाग इत्यादि आदिम जातियों के पश्चात यहाँ शक जाति का अस्तित्व रहा है।
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कुमाऊँ में शक संवत् के प्रचलन एवं अल्मोड़ा में कोसी के समीप स्थित कटारमल सूर्य मंदिर के अस्तित्व से इस संभावना की पुष्टि होती है कि किरात, राजी, नाग इत्यादि आदिम जातियों के पश्चात यहाँ शक जाति का अस्तित्व रहा है।
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चीनी शासक शी हुआंग ती द्वारा जब चीनी सीमा पर दीवार खड़ी कर यू-ची जाति को सीमा से भगाया गया और उधर उत्तर में हूणों की गतिविधियों से शक जाति पहले मध्य एशिया के बल्ख क्षेत्र में सीर दरिया और आमू दरिया के दोआब में बस गयी।