उसी ग्रन्थ में यह भी शङ्का की गयी है कि ‘मङ्गलाचरण करने पर ग्रन्थ की अवश्य निर्विघ्न समाप्ति होति है और मङ्गल न करने पर समाप्ति नहीं होती ऐसा नियम नहीं कहा जा सकता ।
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उसी ग्रन्थ में यह भी शङ्का की गयी है कि ‘ मङ्गलाचरण करने पर ग्रन्थ की अवश्य निर्विघ्न समाप्ति होति है और मङ्गल न करने पर समाप्ति नहीं होती ऐसा नियम नहीं कहा जा सकता ।
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लोगों के मन में यह शङ्का थी की जब केवल सप्तशती की उपासना से अथवा सप्तशती को छोडकर अन्य मन्त्रों की उपासना से ही समानरूप से सब कार्य सिद्ध होते हैं, तब इनमें श्रेष्ठ कौन सा साधन है?