लेकिन, गौर करने वाली बात है कि शब्दों के हिसाब से प्रसून ने अपनी फिल्म तारे जमीन में कमाल किया था वे यहाँ वह कमाल नहीं कर पाए हैं।
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हेम्बोर के अनुसार इस प्रयोग से ये भी साबित होता है कि केवल मनुष्य का दिमाग़ ही इस तरह का नहीं है जो आवाज़ों को पहचान कर शब्दों के हिसाब से अलग अलग कर सके.
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(केवल शब्दों के हिसाब से, अर्थ के मामले में तो ये एक विशाल रचना है ही!) सामाजिक सोच जो कि निरी अवसरवादी हो चुकी है, पर सीधी और जबरदस्त चोट है आपकी ये रचना!
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सुश्री ग्रोवर ने ”भारतीय लोकतंत्र में प्रजा से नागरिक का सफ़र” विषयक व्याख्यान में कहा कि शब्दों के हिसाब से पब्लिक सर्वेंट का मतलब जनता का सेवक होना चाहिये, परंतु देश के कानून की नजर में इसका मतलब सरकारी नौकर होता है।
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प्रिय डॉक्टर साहब, आपका व्यंग तो अच्छा है लेकिन कहीं कहीं पर कुछ हलके शब्दों का प्रयोग किया है जो लेखन और साहित्य दोनों के ही विपरीत है इसका परिणाम यह है की कुछ लोगों की टिप्पड़ी भी शब्दों के हिसाब से स्तरीय नहीं है, एक अच्छे विषय को आप कुछ अच्छे शब्दों के माध्यम से अभी और विस्तार दे सकते थे.
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प्यारेलाल जी ने रफ़ी साहब के गायकी के विविधता को उजागर करते हुए और इस फ़िल्म के इन दोनों गीतों का ज़िक्र करते हुए विविध भारती पर कहा था, “ देखिए, हर एक गाने के शब्दों के हिसाब से, बोलों के हिसाब से, वो गाते थे, और कौन हीरो गा रहा है, वह भी देखते हुए, हम पहले ध्यान देते थे, उसके बाद में देखिए ” बा होश-ओ-हवास मैं दीवाना ” ।
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” ढोल, गवार, शुद्र, पशु, नारी सकल ताड़ना के अधिकारी ” इस श्लोक में ताड़ना का अर्थ खडी बोली हिंदी के प्रताड़ना से लिया जाता रहा है, मुझे आज तक इस दोगलेपन का कारण नहीं पता चल पाया की आखिर क्या कारण रहा है की सारे मानस का अर्थ तो अवधी भाषा के शब्दों के हिसाब से लगाया जाता है पर आखिर इन दो लाइनों ने कौन सा अपराध कर दिया जो इसका अर्थ अवधी में नहीं लिया जाता है??