संजीवनी तुम्हारे शब्द स्मृति कंटक राहों की डोर तुम्हारा साथ सागर का ठहराव विश्वास अटल चट्टान और हृदय पत्थरों से निकलकर बहता हुआ एक निर्मल झरना ये जीवन बस तुममें ही समाहित होगा आदर्श रहोगे तुम ' जिंदगी' याद करेगी तुमको नीले स्वच्छ आकाश सा,
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उस समय को सोचते हुए कुछ शब्द स्मृति में तेज़ी से गूंजने लगते हैं-”आधुनिक”, “प्रगतिशील”, “प्रयोगवाद”, “नया”, “पुराना”, “परंपरा”, “युद्ध”, “संघर्ष”, “क्रांति”, “आन्दोलन” वगैरह जिनसे उस समय के मिजाज़ का अंदाज़ लगाया जा सकता है, और जिनसे तब का “आधुनिकता-बोध” अपने को परिभाषित कर रहा था.
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उस समय को सोचते हुए कुछ शब्द स्मृति में तेज़ी से गूंजने लगते हैं-”आधुनिक”, “प्रगतिशील”, “प्रयोगवाद”, “नया”, “पुराना”, “परंपरा”, “युद्ध”, “संघर्ष”, “क्रांति”, “आन्दोलन” वगैरह जिनसे उस समय के मिजाज़ का अंदाज़ लगाया जा सकता है, और जिनसे तब का “आधुनिकता-बोध” अपने को परिभाषित कर रहा था.
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शोक सभा में बुदबुदाते शब्द झर कर गिर जाते अदृश्य धूल के कणों की तरह चर्च के ठंडे फर्श पर प्रार्थना के शब्द शोक के शब्द स्मृति के शब्द अनुपस्थिति को उकेरते शब्द विस्मृति की स्याही में एकांत के शब्द इस बार बसंत भी भूल गया जल्दी आना.
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उस समय को सोचते हुए कुछ शब्द स्मृति में तेज़ी से गूंजने लगते हैं-' ' आधुनिक '', '' प्रगतिशील '', '' प्रयोगवाद '', '' नया '', '' पुराना '', '' परंपरा '', '' युद्ध '', '' संघर्ष '', '' क्रांति '', '' आन्दोलन '' वगैरह जिनसे उस समय के मिजाज़ का अंदाज़ लगाया जा सकता है, और जिनसे तब का '' आधुनिकता-बोध '' अपने को परिभाषित कर रहा था.