शवाधान क्षेत्र की संरचना अवशेष को बहादुर कलारिन की माची मानना और इस पृष्ठभूमि पर तैयार नाटक में शरीर की नश्वरता का गीत ' चोला माटी के...' के संयोग में तो काव्य सी तरलता भी है।
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लौहयुग के अवशेषों की दृष्टि से धमतरी-बालोद मार्ग के विभिन्न स्थल यथा-धनोरा, सोरर, मुजगहन, करकाभाट, करहीभदर, चिरचारी और धमतरी जिले के ही लीलर, अरोद आदि में सैकड़ों की संख् या में महापाषाणीय स्मारक-शवाधान हैं।
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पहले जहां गंगा का पानी अमृत माना जाता था तथा इसे पीने से हैजा और पेचिश जैसी बीमारियां नहीं होती थीं, वहीं आज गंगा के किनारे लगी औद्योगिक इकाइयों द्वारा प्रतिदिन गिरने वाले दो करोड़ 90 लाख लीटर प्रदूषित कचरा, नगरों, शवाधान और पूजा की गंदगी ने गंगा के पानी को पीना तो दूर नहाने और सिंचाई के योग्य भी नहीं रहने दिया है।