आज वैधानिक तौर पर शिक्षण संस्थाओं के परिसर में छात्रों को शारीरिक दंड देना वर्जित है जिसके पीछे उद्देश्य यही था कि क्रूर या अमानवीय घटनाएं न हों परन्तु इससे छात्र-अध्यापक संबंधों को समायोजित करने में कठिनाई आई, आखिर उम्र का एक दौर ऐसा है, जिसमें दंड भी अनिवार्य है।