| 11. | वे तो एक शास्त्रविहित मार्ग बता रहे हैं, जिसका पूर्व मुमुक्षुओं ने श्रद्धापूर्वक अनुसरण किया है।
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| 12. | देवर्षि नारदजी कहते हैं-श्रद्धापूर्वाः सर्वधर्माः.... श्रद्धा सब धर्मों (शास्त्रविहित कर्मों) मूल में है।
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| 13. | अर्थात-शास्त्रविहित आचरण करने वाले व्यक्ति उत्तम योनियों को प्राप्त होते हैं और पापाचारी पाप योनियों को प्राप्त होते हैं।
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| 14. | शुचिता का सन्निवेश मन का परिष्कार, धर्मार्थ-सदाचरण, शुद्धि-सन्निधान आदि ऐसी योग्यताऐं हैं जो शास्त्रविहित क्रियाओं के करने से प्राप्त होती हैं।
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| 15. | वीर मित्रोदय ने संस्कार की परिभाषा इस तरह की है-यह एक विलक्षण योग्यता है जो शास्त्रविहित क्रियाओं के करने से उत्पन्न होती है।
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| 16. | कुछ ऐसे श्रेष्ठ कर्म होते हैं, जो शास्त्रविहित हैं, जिनका परिपालन गौरवपूर्ण ढंग से उच्च कर्त्तव्यों के रूप में किया जाना चाहिए।
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| 17. | तू शास्त्रविहित कर्तव्यकर्म कर क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है तथा कर्म न करने से तेरा शरीर-निर्वाह भी नहीं सिध्द होगा।
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| 18. | भावार्थ: तू शास्त्रविहित कर्तव्यकर्म कर क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है तथा कर्म न करने से तेरा शरीर-निर्वाह भी नहीं सिद्ध होगा॥8॥
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| 19. | आचार का अर्थ है जो आचरण या व्यवहार अहिंसा आदि धर्म से सम्मत एवं शास्त्रविहित हो, वह आचार है और इसके विपरीत जो हो वह अनाचार है।
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| 20. | ' ' श्रीकृष्ण यहाँ कह रहे हैं कि जो कर्मफल त्यागी होकर शास्त्रविहित कर्म करते हैं-वही संन्यासी हैं, किंतु जिनने वैदिक होम-यागादि कर्म छोड़ दिए हैं।
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