शिक्षा काल में इन्हों ने उर्दू के साथ हिन्दी का भी अध्ययन किया.
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क्या मृत्युपर्यन्त औपचारिक शिक्षा काल बढ़ाया जा सकेगा क्योंकि ज्ञान विस्फोट तो मृत्यु पर्यन्त चलता रहेगा।
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शिक्षा काल से ही इनमे काव्य प्रतिभा जागृत हो गई थी और कविताये रचा करते थे ।
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शिक्षा काल से ही इनमे काव्य प्रतिभा जागृत हो गई थी और कविताये रचा करते थे ।
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क् या मृत् युपर्यन् त औपचारिक शिक्षा काल बढ़ाया जा सकेगा क् योंकि ज्ञान विस् फोट तो मृत् यु पर्यन् त चलता रहेगा।
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आपने शिक्षा काल के विभिन्न पहलुओं को इस पोस्ट के माध्यम से सामने लाकर एक कड़ी को जीवंत कर दिया..... आपका आभार
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यदि हम याद करने का कष्ट करें और वैदिक, बौद्ध शिक्षा काल को छोड़ दे तो भी पाएँगे कि दयानंद सरस्वती, राजा राममोहन राय, विवेकानंद, रमण महर्षि, रवीन्द्रनाथ टैगोर और महात्मा गाँधी जैसे शिक्षा विचारक हमारे यहाँ हुए हैं।
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लेकिन इसमें यह मर्यादा बनी हुई है कि शिक्षा और संस्कारों की नींव मजबूत करने के लिए उन सभी लोगों, वस्तुओं और विचारों को त्यागना जरूरी है जो शिक्षा काल पूरा होने के बाद हमारे जीवन में आनी होती हैं ।
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मुझे याद है, जिसमें उन्होंने इंदौर में बीते अपने जीवन के आरंभिक शिक्षा काल के दो सहपाठी-चित्रकारों का अपनी कला में प्रभाव स्वीकारा कि उन्होंने रेखाओं के सरलीकरण (सिम्पलिफिकेशन ऑफ़ लाइन्स) में विष्णु चिंचालकर और रंग-संयोजन में डी.जे. जोशी से काफी प्रभावग्रहण किया।
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महाविद्यालय का शिक्षा काल ५ वर्षों का है जिसमें शास्त्री स्तर तक व्याकरण, साहित्य विषय सहित समस्त आधुनिक विषय आचार्य स्तर पर व्याकरण एवं साहित्य विषयों के अध्यापन की व्यवस्था है | इसमें स्नातक एवं परास्नातक स्तर पर सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्विद्यालय वाराणसी निम्नलिखित