रचना कर्म के लिए कई बार बुक कराए गए प्रायः मंहगे होटल उसने कहा था-पहाड़ पर दौड़ने के बाद शरीर का शिथिल होना आवश्यक है
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इस दिसम्बर से जीवन में अधकचरे रिश्तों की धुंध घने कोहरे सी छाई थी-उमंगों का शिथिल होना, ठिठुरती ठण्ड के आभास जैसा विचारों को संकुचित करता, भावनाओं से उठती सिहरन से कोमल मन कंपकपाता था-ऐसे में तुम काँधे पे झोली लटकाए, मेरे जीवन में रंग भरने...
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इस दिसम्बर से जीवन में अधकचरे रिश्तों की धुंध घने कोहरे सी छाई थी-उमंगों का शिथिल होना, ठिठुरती ठण्ड के आभास जैसा विचारों को संकुचित करता, भावनाओं से उठती सिहरन से कोमल मन कंपकपाता था-ऐसे में तुम काँधे पे झोली लटकाए, मेरे जीवन में रंग भरने
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अफारा, टांगों में दर्द, पेट में वायु बनना, जोड़ों में दर्द, लकवा, साइटिका, शरीर के अंगों का सुन्न हो जाना, शिथिल होना, कांपना, फड़कना, टेढ़ा हो जाना, दर्द, नाड़ियों में खिंचाव, कम सुनना, वात ज्वर तथा शरीर के किसी भी भाग में अचानक दर्द हो जाना आदि।
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जैसे ही संवेदी आवेगों की संख्या और बारम्बारता बढ़ती है, प्रेरक आवेग प्रतिवर्त क्रिया के रूप में मूत्राशय की डीट्रसर पेशी (detrusor muscle) का संकुचन तथा आतंरिक संकोचिनी पेशी का शिथिलन कर देते हैं, इससे आतंरिक मूत्रमार्गीय छिद्र खुल जाता है लेकिन बाह्य संकोचिनी पेशी का शिथिल होना अर्थात बाह्य मूत्रमार्गीय छिद्र का खुलना इच्छा पर निर्भर करता है।