की अंगुलियाँ जो पहिले अर्थात् जिससमय रावण तपस्या कर रहा था, भगवान् के आशीर्वाद को पाने के लिए दशानन रावण अपने एक-एक शिर को पूजा के उपहाररूप में समर्पण करने लग गया, इस प्रकार शिरच्छेदन से निकलते हुए रक्त से संसक्त हो गया था, प्राण भी उसके प्रयाण कर रहे थे, दयालु भगवान् ने शिरच्छेदन से उसको रोका, और उसकी भ्क्ति से प्रसन्न होकर, उसे वरदान दिया।