उर में वायु स्व स्वरूप में आता है, शिर में स्वर-ध्वनि रूप और मुख में ध्वनि-वर्ण रूप होता है।
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उर में वायु स्व स्वरूप में आता है, शिर में स्वर-ध्वनि रूप और मुख में ध्वनि-वर्ण रूप होता है।
13.
उर / कण्ठ में टकराकर शिर में टकराकर द्वितीय, मुख स्थानों में तीसरा और अन्त में वर्ण रूप में बाहर निकलता है।
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उर / कण्ठ में टकराकर शिर में टकराकर द्वितीय, मुख स्थानों में तीसरा और अन्त में वर्ण रूप में बाहर निकलता है।
15.
अनामी सबसे बड़ी शाखा है और दाहिनी ओर ऊपर ग्रीवामूल में पहुँचकर, दाहिनी मूल ग्रीवा और शिर में रुधिर पहुँचाती हैं तथा अधोजत्रुक ऊर्ध्व शाखा का रुधिर संभरण करती है।
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अनामी सबसे बड़ी शाखा है और दाहिनी ओर ऊपर ग्रीवामूल में पहुँचकर, दाहिनी मूल ग्रीवा और शिर में रुधिर पहुँचाती हैं तथा अधोजत्रुक ऊर्ध्व शाखा का रुधिर संभरण करती है।
17.
इस काल का प्रारंभ होने पर चित्त में निरुत्साह, शरीर की शिथिलता, निद्रा न आना, शिर में तथा शरीर के भिन्न भिन्न भागों में पीड़ा रहना, अनेक प्रकार की असुविधाएँ, या बेचैनी होना आदि लक्षण प्रकट होते हैं।
18.
इस काल का प्रारंभ होने पर चित्त में निरुत्साह, शरीर की शिथिलता, निद्रा न आना, शिर में तथा शरीर के भिन्न भिन्न भागों में पीड़ा रहना, अनेक प्रकार की असुविधाएँ, या बेचैनी होना आदि लक्षण प्रकट होते हैं।
19.
स्ट्रिप्स में ओडी की जीभ के आकर को लेकर जो खिलवाड़ होता है, उसमें उसकी रहस्यमयता पर गारफील्ड टिप्पणी करता है, “इसमें कोई आश्चर्य की बात है क्या कि उसके शिर में दिमाग के लिए कोई जगह है ही नहीं?”
20.
वाह क्या कहना इसके बहिश्त की प्रशंसा कि वह अरबदेश से भी बढ़कर दीखती है! और जो मद्य मांस पी-खाके उन्मत्त होते हैं इसलिए अच्छी-अच्छी स्त्रियाँ और लौंडे भी वहाँ अवश्य रहने चाहिए नहीं तो ऐसे नशेबाजों के शिर में गरमी चढ़ के प्रमत्त हो जावें।