उनकी अर्थव्यवस्था पशुशक्ति, शिल्पकर्म और कृषिकर्म पर आधारित थी, जिसमें आश्रम-प्रमुख या गुरु के साथ सभी आश्रमवासी मिलजुलकर खेती करते थे.
12.
देवताद्विज बंदक ', देवताओं एवं ब्राह्मणों की सेवा, शिल्पकर्म, खेतीबाड़ी, नाटक और नक्काशी जैसे काम शूद्रों के हैं, ब्राह्मण के लिए ये कार्य निषिद्ध थे.
13.
यही नहीं वे सारे कार्य जो कुशल शिल्पकर्म की अपेक्षा रखते थे और जिन्हें श्रमिकों द्वारा आसानी से कराया जा सकता था, उन्नत तकनीकयुक्त मशीनों के माध्यम किए जाने लगे.