उनके बारे में कहा जाता है कि जब शास्त्रीय, लोक और लोकप्रिय के बीच की रेखाएं धूमिल होकर संगीत का एक ऐसा रूप बनाती हैं, जो कि शुद्ध संगीत है, वही मेहदी हसन साहब का संगीत है।
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अरुंधती धुरु के भाषण और एस. आर. दारापुरी एवं लोक राजनीति मंच के घोषणा पत्र को सुनना मेरे कानों के लिए शुद्ध संगीत के समान था, और मैं इन दोनों की खुले रूप से प्रशंसा एवं उन पर विचार विमर्श करने का लोभ संवरण नहीं कर पायी।