वेदांत के अनुसार प्राकृत प्रलय अर्थात प्रलय का वह उग्र रूप जिसमें तीनों लोकों सहित महतत्त्व अर्थात प्रकृति के पहले और मूल विकार तक का विनाश हो जाता है और प्रकृति भी ब्रह्म में लीन हो जाती है अर्थात संपूर्ण ब्रह्मांड शून्यावस्था में हो जाता है।
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पहला किसी भी धरती पर से जीवन का समाप्त हो जाना, दूसरा धरती का नष्ट होकर भस्म बन जाना, तीसरा सूर्य सहित ग्रह-नक्षत्रों का नष्ट होकर भस्मीभूत हो जाना और चौथा भस्म का ब्रह्म में लीन हो जाना अर्थात फिर भस्म भी नहीं रहे, पुन: शून्यावस्था में हो जाना।
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इसके लिए दिन-रात में कई मर्तबा शून्यावस्था में रहना जरूरी है ताकि अपने से संबंधित संकेत स्वतः डाउनलोड होते रहें और हम अपने इन बॉक्स को देख कर भावी जीवन का निर्माण कर सकें, भविष्य की दिशा और दशा तय कर सकें और उन सभी खतरों से अपने आपको बचाकर रख सकें जो आने वाले हैं।
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चार प्रलय: मूलत: प्रलय चार प्रकार की होती है-पहला किसी भी धरती पर से जीवन का समाप्त हो जाना, दूसरा धरती का नष्ट होकर भस्म बन जाना, तीसरा सूर्य सहित ग्रह-नक्षत्रों का नष्ट होकर भस्मीभूत हो जाना और चौथा भस्म का ब्रह्म में लीन हो जाना अर्थात फिर भस्म भी नहीं रहे, पुन: शून्यावस्था में हो जाना।
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इसी प्रकार जिस किसी व्यक्ति या विषय का विचार बार-बार आने से मन खिन्न होता है, अपने बारे में कोई व्यक्ति बुरा सोचता है अथवा अपनी ही किसी बात को लेकर दुःखी करने का प्रयास करता है अथवा हम स्वयं किसी बात को लेकर खिन्न मना हो जाते हैं, उस स्थिति में कुछ क्षण के लिए शून्यावस्था को प्राप्त करें।
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मन की अभिव्यक्ति चार प्रकार की वाणी से होती है-(१) बेखरी-बोलकर शब्दों द्वारा अभिव्यक्ति देना, (२) मध्यमा-शारीरिक हाव-भावों को अभिव्यक्त करना, (३) पश्यन्ति-प्रेम, करुना, दया, अहिंसा आदि ह्रदय में उत्पन्न सूक्ष्म तरंगों द्वारा जिन्हें दूसरा ह्रदय ग्रहण कर लेता है और (४) परा-यह आत्मा की वाणी है और इसे शून्यावस्था में सुना जा सकता है.