भरत ने जहां नायक के चौदह भेद किए हैं-प्रेमी और परमप्रिय, सौम्य, निरंकुश, स्वत्वबोधक, जोशपूर्ण, प्रीतिकर, भावप्रवण, बदमाश, दुष्ट, मिथ्यावादी, जिद्दी, शेखीबाज, बेशरम और क्रूर, वहीं नायिका को आठ श्रेणइयों में ही रखा और नाट्यशास्त्रीय एवं श्रंगारिक साहित्य में उसे नायक की तुलना में काफी स्थान दिया।