यह शैलोत्कीर्ण मंदिर उस समय का शिल्प की दृष्टि से अनूठा प्रयोगवादी निर्माण था ।
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किले पर पाई जाने वाली शैलोत्कीर्ण शिल्प को हम दो वर्गों में बाँट सकते हैं।
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भारतीय इतिहास में पत्थरों पर आकृतियां उकरने की कला शैलोत्कीर्ण शिल्प लगभग बाइस सौ वर्ष पुराना है ।
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भारतीय इतिहास में पत्थरों पर आकृतियां उकरने की कला शैलोत्कीर्ण शिल्प लगभग बाइस सौ वर्ष पुराना है ।
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किले पर जहाँ भारतीय स्थापत्य की दृष्टि से विलक्षण भव्य महल हैं, वही हिन्दू व जैन मंदिर एवं शैलोत्कीर्ण गुफाएँ भी बेमिसाल हैं ।
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किले पर जहाँ भारतीय स्थापत्य की दृष्टि से विलक्षण भव्य महल हैं, वही हिन्दू व जैन मंदिर एवं शैलोत्कीर्ण गुफाएँ भी बेमिसाल हैं ।
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इस दुर्लभ किले में अनेकों शैलोत्कीर्ण मूर्तियां मिलती हैं जिनमें कार्तिकेय, गणेश, जैन तीर्थकारों की आसान, मूर्तियां, नंदी, दुग्धपान कराती मां एवं शिशु आदि मुख्य है।
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मुख्य मन्दिर समूह के अतिरिक्त पहाड़ी की पूर्वी दिशा में कुछ शैलोत्कीर्ण गुफाएं एवं सम्मुख एक तालाब है जो विद्वानों और पर्यटकों का ध्यान सहसा ही अपनी ओर आकृष्ट करता है।
19.
मसरूर के शैलोत्कीर्ण एकाश्म मन्दिर कांगड़ा जिले में धर्मशाला से 60 किलोमीटर दूर तथा गगल से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थानीय (शिवालिक) बलुआ पत्थर की पहाड़ी की चोटी पर शोभनीय है।