वीर निर्वाण के ९९ ३ वर्ष व्यतीत होने पर कालकसूरि ने पर्यूषणचतुर्थी की स्थापना की, तथा निर्वाण के ९ ८ ० वर्ष समाप्त होने पर आर्यमहागिरि की संतान में उत्पन्न श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण ने कल्पसूत्र की रचना की, एवं इसी वर्ष आनंदपुर में ध्रुवसेन राजा के पुत्र-मरण से शोकार्त होने पर, उनके समाधान हेतु कल्पसूत्र सभा के समक्ष कल्पसूत्र की वाचना हुई।
12.
विलोम कहना मुश्किल है कि हर वह व्यक्ति जिसके लिए शोक सभा की जाती है उस शोक का हक़दार होता है भी या नहीं जो शोक उसके लिए मनाया जाता है वह सच्चा होता है या नहीं और जो उसके लिए शोक मना रहे होते हैं उसमें से कितने वाकई शोकार्त होते हैं और कितने महज राहत महसूस करते हुए दुनियादार बहरहाल जैसी भी रही हो उस एक ज़िंदगी को डेढ़-दो घंटों में निपटा देने के बाद दो मिनट का वह वक्फ़ा आता है जब मौन रखा जाना होता है