सुमुखि! तेरा यह कमल के समान सुन्दर, निर्मल और मनोहर मुख शोक से पीड़ित होकर शोभाहीन हो गया है, मुझे स्वीकार करके उसे पुनः शोभायमान कर।
12.
कितना अच्छा रहा होता अगर शोभाहीन होने की जगह येदुरप्पा ने सुषमा स्वराज के कृपा पात्र रेड्डियों को मंत्रिमण्डल से हटाये जाने के सवाल पर् त्याग पत्र दे दिया होता।
13.
जैसे मूर्ख मनुष्यों की ध्र्ष्टता पूर्ण उक्तियों से अच्छे वक्ता की वाणी भी मलिन पड़ जाती है वैसे ही मलिन मेघों से आच्छादित रहने के कारण निर्मल चन्द्रमा भी शोभाहीन हो गया।
14.
पहला-दिन में शोभाहीन चन्द्रमा, दूसरा-नष्टयौवना कामिनी, तीसरा-कमलविहीन सरोवर, चौथा-मूर्खता झलकाता मुख, पांचवां-धनलोलुप राजा, छठा-दुर्गतिग्रस्त सज्जन और सातवां-राजदरबार में पहुंच रखने वाला दुष्ट।
15.
भावार्थ:-ये स्वर्ण के कण या तारे भी सीताजी के विरह से ऐसे श्रीहत (शोभाहीन) एवं कान्तिहीन हो रहे हैं, जैसे (राम वियोग में) अयोध्या के नर-नारी विलीन (शोक के कारण क्षीण) हो रहे हैं।
16.
सिय मुख समता पाव किमि चंदु बापुरो रंक॥ खारे समुद्र में तो इसका जन्म, फिर (उसी समुद्र से उत्पन्न होने के कारण) विष इसका भाई, दिन में यह मलिन (शोभाहीन, निस्तेज) रहता है, और कलंकी (काले दाग से युक्त) है।
17.
यह हिन्दी पट्टी वालों की फिल्म कम्पनी है इसलिये दक्षिण के कलाकारों को कम जगह मिली है वैसे भी दक्षिण में जिस व्यापारी से अनैतिक समझौता करके सत्ता हथियाई थी वह संसद में विपक्ष की नेता का कृपापात्र है सो उसने ऐसा कोड़ा फटकारा कि येदुरप्पा को शोभाहीन कर दिया।
18.
तुलसीदासजी कहते हैं-जैसे सूर्य के बिना दिन, प्राण के बिना शरीर और चंद्रमा के बिना रात (निर्जीव तथा शोभाहीन हो जाती है), वैसे ही श्री रामचंद्रजी के बिना अयोध्या हो जाएगी, हे भामिनी! तू अपने हृदय में इस बात को समझ (विचारकर देख) तो सही।
19.
इस प्रसंग के शुरू में ही श्री राम ने साफ शब्दों में कहा है कि मैं सिर्फ़ एक भक्ति का ही सम्बन्ध जनता हूँ॥ जाती, पाती, कुल, धर्म, बड़ाई, धन, बल, कुटुंब, गुण और चतुरता-इन सबके होने पर भी भक्ति रहित मनुष्य कैसा लगता है जैसे जलहीन बादल (शोभाहीन) दिखाई देता है॥