अन्त मे कस्तूरबाई ने इस संवाद को यह कहकर बन्द किया, ' स्वामीजी, आप कुछ भी क्यों न कहे, पर मुझे माँस का शोरवा खाकर स्वस्थ नही होना है ।
12.
लेकिन किसी स् त्री के शरीर पर शोरवा डालकर, उसे चाटकर तो वे सिर्फ मुंह दिखा रहे हैं तुम्हारे समाज को ; वे यह कह रहे हैं कि क्या तुम समझते हो हमें।
13.
उसके दिमाग में क्या आयी है, या कहें कि झक समायी है कि वह पिद्दी न पिद्दी का शोरवा, किस खेत की मूली है, कि उसके मन में राजा से दो-दो हाथ करने की समायी है...
14.
आइए खाने की शुरुआत शोरबे से करते हैं. माँसाहारियों को परोसा जाएगा “लखनवी यखनी शोरवा ” तो शाकाहारी स्वाद लेगे ‘दाल शोरवा' का. इसके बाद बारी है केसर लगा कर रोस्ट की गई ‘झींगा मेहरुन्निसाँ'और मुर्ग की खास प्रिपरेशन ‘टँगरी-मलिहाबादी' की. दम पुख्त एक लखनवी व्यंजन पकाने की विधि है।