| 11. | पाण्डुनन्दन! निश्चय ही तुम बड़े श्रद्धाहीन हो, तुम्हारी बुद्धि अच्छी नहीं जान पड़ती।
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| 12. | तब श्री कृष्ण जी ने कहा कि हे अर्जुन तू निश्चय ही बड़ा श्रद्धाहीन है।
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| 13. | पाण्डुनन्दन! निश्चय ही तुम बड़े श्रद्धाहीन हो, तुम्हारी बुद्धि अच्छी नहीं जान पड़ती।
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| 14. | तब श्री कृष्ण जी ने कहा कि हे अर्जुन तू निश्चय ही बड़ा श्रद्धाहीन है।
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| 15. | ‘‘जो श्रद्धाहीन और धन के लालची हैं तथा मांस खाने के लिये तत्पर रहते हैं
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| 16. | पर आज हम श्रद्धाहीन हो गए हैं और इसलिए हमारा तथा देश का पतन हो रहा है।
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| 17. | क्योंकि उन्हे पता था कि श्रद्धाहीन व्यक्ति उनसे कोई लाभ नही ले पाएगा उल्टा आश्रम का वातावरण गन्दा अवश्य करेगा।
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| 18. | श्रद्धाहीन का जीवन व् यर्थ है! समृद्धि बढ़ाने के अनुभूत प्रयोग डायरिया से बचाव कैसे हो तीन अनुभूत टोटके जप-रहस् य
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| 19. | अर्थात्-‘‘ श्रद्धाहीन अज्ञानी (विवेकरहित) तथा संशययुक्त मनुष्य परमार्थ पथ से भ्रष्ट हो जाता है, उसका नाश हो जाता है।
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| 20. | श्रद्धाहीन और धन के लालची हैं तथा मांस खाने के लिये तत्पर रहते हैं वह हमेशा दूसरों के धन पर नजरें गढ़ाये रहते हैं। ' '
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