काम करने की उम्र के प्रत्येक व्यक्ति को, जो काम करना चाहता है, सामाजिक श्रम प्रक्रिया में हिस्सा लेने का अधिकार है।
12.
अगर श्रम प्रक्रिया में कोई बदलाव करना होता है तो मैनेजर सभी मजदूरों को इकट्ठा करता है और कहता है, ” अब हम काम को अलग तरह से व्यवस्थित करेंगे.
13.
वस्त्रों-आवासों में श्रम प्रक्रिया रहती है, लेकिन आधुनिक विवेक इस सब को अपनी जद से, अपने सोच-चिंतन और व्यवहार से बाहर ही नहीं रखता वरन् निरंतर उसका षोषण-उत्पीड़न भी करता है।
14.
में जिस श्रम प्रक्रिया का समायोजन मानव मस्तिष्क ने किया था, उसी को वह दूसरों से करवाना चाहता था और स्वयं उस श्रम से बचना चाहता था।.........परवर्ती काल में भी पातंजली व भट्टोजि जैसे विद्वानों ने अपने आसपास के आदिवासी जीवन को केवल घृणा और तिरस्कार की दृष्टि से ही देखा।‘
15.
) में जिस श्रम प्रक्रिया का समायोजन मानव मस्तिष्क ने किया था, उसी को वह दूसरों से करवाना चाहता था और स्वयं उस श्रम से बचना चाहता था।......... परवर्ती काल में भी पातंजली व भट्टोजि जैसे विद्वानों ने अपने आसपास के आदिवासी जीवन को केवल घृणा और तिरस्कार की दृष्टि से ही देखा।
16.
इसी प्रक्रिया को कार्ल मार्क्स ने आधुनिक उद्योगों के प्रारम्भिक काल में ' एलियेनेशन' (आत्मदुराव) की संज्ञा थी जिसमें मजदूरों का निजत्व जो उनकी श्रम प्रक्रिया से जुड़ा है उससे अलग हो जाता है और यह श्रम जब उत्पादन के जरिए पूँजी का रूप ग्रहण कर लेता है तो फिर मजदूरों के शोषण का औजार बन जाता है ।
17.
इसी प्रक्रिया को कार्ल मार्क्स ने आधुनिक उद्योगों के प्रारम्भिक काल में ‘एलियेनेशन ' (आत्मदुराव) की संज्ञा थी जिसमें मजदूरों का निजत्व जो उनकी श्रम प्रक्रिया से जुड़ा है उससे अलग हो जाता है और यह श्रम जब उत्पादन के जरिए पूँजी का रूप ग्रहण कर लेता है तो फिर मजदूरों के शोषण का औजार बन जाता है ।
18.
इसी प्रक्रिया को कार्ल मार्क्स ने आधुनिक उद्योगों के प्रारम्भिक काल में ‘ एलियेनेशन ' (आत्मदुराव) की संज्ञा थी जिसमें मजदूरों का निजत्व जो उनकी श्रम प्रक्रिया से जुड़ा है उससे अलग हो जाता है और यह श्रम जब उत्पादन के जरिए पूँजी का रूप ग्रहण कर लेता है तो फिर मजदूरों के शोषण का औजार बन जाता है ।
19.
जब से समाज में वर्ग संरचना उभरना शुरु हुआ, यानि ऐसे वर्गों का उभार होना शुरु हुआ जो समाझ में प्रभुत्व प्राप्त करते जा रहे थे, और श्रम प्रक्रिया से विलग रहकर भी साधनों का उपभोग करने में सक्षम थे, और इसीलिए उनके पास अवसर था कि वह जगत की दार्शनिक संकल्पनाओं के लिए काल्पनिक चिंतन की उड़ान भर सकें, तभी से यथास्थिति बनाए रखने और उसे धार्मिक जामा पहनाने की कवायदें शुरू हुई और साथ ही लोक की इस भौतिकवादी समझ और व्याख्याओं पर अवरोध डालना शुरू कर दिया गया।