अगर धुर दक्षिणपंथी जायनवादी लोग मार्क्सवादी संगठनात्मक ढाँचा खड़ा करके भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने में कामयाबी के साथ तेजी से बढ़ रहे हैं, तो संस्थागत प्रतिबद्ध कैडरबेस मार्क्सवादी संगठनात्मक ढाँचे के तहत मूलनिवासी बहुजन उसका मुकाबला करने के लिये गोलबंद क्यों नहीं हो सकते, मेरा यह प्रश्न है, मित्रों सोचें जरूर।