कहानी यह है कि शाहजहाँ न मुमताज के लिए तो ताजमहल बनवाया और अपने लिए, जैसा संगमरमर का ताजमहल है ऐसा अपनी कब्र के संगमूसा का काला पत् थर का महल वह यमुना के उस पार बना रहा था।
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कहानी यह है कि शाहजहां ने मुमताज के लिए तो ताजमहल बनवाया और अपने लिए, जैसा संगमरमर का ताजमहल है, ऐसा ही अपनी कब्र के लिए संगमूसा का, काले पत्थर का महल वह यमुना के उस पार बना रहा था।
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कहानी यह है कि शाहजहाँ न मुमताज के लिए तो ताजमहल बनवाया और अपने लिए, जैसा संगमरमर का ताजमहल है ऐसा अपनी कब्र के संगमूसा का काला पत् थर का महल वह यमुना के उस पार बना रहा था।
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कहानी यह है कि शाहजहां ने मुमताज के लिए तो ताजमहल बनवाया और अपने लिए, जैसा संगमरमर का ताजमहल है, ऐसा ही अपनी कब्र के लिए संगमूसा का, काले पत्थर का महल वह यमुना के उस पार बना रहा था।
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उसके डोंगे गंगाजमुनी थे, गिलास और प्लेटें चाँदी की थीं और कटोरियाँ सोने की तब तक चूँकि भारतीय समाज में मेज-कुर्सियों का प्रचलन नहीं हो पाया था इससे बैठने के लिए संगमरमर के पीढ़े और खाने की थालियाँ रखने के लिए संगमूसा की चौकियाँ पहले ही किराए पर मँगा ली गयी थीं।
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छोटी बड़ी अनेक पहाड़ियों से घिरा हुआ, सुन्दर नीली झीलों व संकरे दर्रों का नाम ही मेवाड़ नहीं अपितु यहाँ ग्रेनाईट, क्वार्टज़, बसाल्ट, जिप्सम, मार्बल, संगमूसा, माइका, रॉक फास्फेट आदि खनिज पदार्थों के साथ सीसा, चांदी जैसी बहुमूल्य धातुओं के खानों की प्रचुरता है.
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3. क्षण-क्षण की छैनी से काटो तो जानूँ! पसर गया है / घेर शहर को भरमों का संगमूसा / तीखे-तीखे शब्द सम्हाले जड़े सुराखो तो जानूँ! / फेंक गया है बरफ छतों से कोई मूरख मौसम पहले अपने ही आंगन से आग उठाओ तो जानूँ! चैराहों पर प्रश्न-चिन्ह सी खड़ी भीड़ को अर्थ भरी आवाज लगाकर दिशा दिखाओ तो जानूँ!
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शियों की छतेंआबनूसी किवाड़े घरों परआदमी आदमी में दीवार हैतुम्हें छैनियां लेकर बुलाया हैसीटियों से सांस भर कर भागतेबाजार, मीलों,दफ्तरों को रात के मुर्दे,देखती ठंडी पुतलियां आदमी अजनबी आदमी के लिएतुम्हें मन खोलकर मिलने बुलाया है!बल्ब की रोशनी रोड में बंद हैसिर्फ परछाई उतरती है बड़े फुटपाथ परजिन्दगी की जिल्द केऐसे सफे तो पढ़ लियेतुम्हें अगला सफा पढ़ने बुलाया है!मैंने नहींकल ने बुलाया है!3.क्षण-क्षण की छैनी से काटो तो जानूँ!पसर गया है / घेर शहर कोभरमों का संगमूसा / तीखे-तीखे शब्द सम्हालेजड़े सुराखो तो जानूँ!