279. कारागार से मुक्त करने के बाद जब उससे युद्घ की स्थिति के सम्बन्ध में प्रश्न किया गया तो उसने उत्तर दिया कि ' स्वर्ण अवसर तो हम हाथ से खो बैठे हैं, अब तो मुझे सर्वत्र ढिलाई ही प्रतीत हो रही है, फिर भी कर्त्तव्यपालन मात्र के लिए तो संग्राम करना ही होगा।
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युधिष्ठिर बोले, “ आप मेरे छोटे भाई नकुल को जीवित कर दें | ” यक्ष ने आश्चर्य से कहा, “ तुम राज्यहीन होकर वन में भटक रहे हो, शत्रुओं से तुम्हें अंत में संग्राम करना है, ऐसी दशा में अपने परम पराक्रमी भाई भीमसेन अथवा शस्त्रज्ञ चूड़ामणि अर्जुन को छोड़कर नकुल के लिए क्यों व्यग्र हो? ”