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संहिताकार उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
11.इस अनैसर्गिक आहार-विहार और उक्त मनोविकारों के परिणाम दर्शाते संहिताकार आगेकहते हैं-अतोनिमित्तं हि शिथिली भवन्ति मांसानि विमुच्यन्तेसन्धयः, विदह्यते रक्तम् 'विष्यन्दते च अनल्पं मेदः, नसंधीयते अस्थिषु मज्जा, शुक्र न प्रवर्तते, क्षयम् उपैतिओजः.

12.चरक संहिताकार के अनुसार समान्य द्रव्य तो मात्र धातु को बल प्रदान करते हैं, परन्तु शतावर तो मास, शुक्र और स्तन्य को विशेष रूप से बल देती है ।

13.इसका यह तात्पर्य नहीं कि वसिष्ठ, मनु, चाणक्य, भरत आदि दो दो व्यक्ति हो गए, परंतु इस संदर्भ में ' वृद्ध ' का तात्पर्य परिपूर्ण संहिताकार से है।

14.यहाँ यह विचारणीय है कि चरक संहिताकार के समय तक एक व्यवस्थित दर्शन के रूप में कपिलोक्त दर्शन सांख्य के ' प में सुप्रतिष्ठित था और चरक संहिताकार इस तथ्य से परिचित थे।

15.यहाँ यह विचारणीय है कि चरक संहिताकार के समय तक एक व्यवस्थित दर्शन के रूप में कपिलोक्त दर्शन सांख्य के ' प में सुप्रतिष्ठित था और चरक संहिताकार इस तथ्य से परिचित थे।

16.अहिर्बुध्न्यसंहिता के इस षष्टिभेद के बारे में उदयवीर शास्त्री का मत है कि ' वार्षगण्य के योग संबंधी व्याख्या-ग्रन्थों के आधार पर और कुछ इधर-उधर से सुन-जानकर संहिताकार ने साठ पदार्थों की संख्या पूरी गिनाने का प्रयास किया * ' ।

17.संहिताकार षष्टितन्त्र से सुपरिचित या अल्पपरिचित रहा हो या यत्र-तत्र उपलब्ध जानकारी के आधार पर साठ पदार्थों की गणना की हो-एक तथ्य स्पष्ट है कि षष्टितन्त्र के कपिलप्रोक्त सांख्य दर्शन का नाम होने के विषय में संदेह मात्र भी न था।

18.आठवीं सदी ई. पू. उसकी निचली सीमा हुई और ऊपरी सीमा उससे सौ वर्ष पूर्व के भीतर ही इस कारण रखनी होगी कि उसमें महाभारत के व्यक्तियों का उल्लेख हुआ है, और कि उसके संहिताकार वेदव्यास हैं, जो स्वयं महाभारत काल के पूर्वतर पुरुषों में से हैं।

19.मनु ' ' क्यों कोई दूसरा संहिताकार क्यों नही? जबकि वह स्वंय भी उसे जातिप्रथा के जन्म का दोषी नहीं मानते (इसी पुस्तक से) इतना ही नही उसका ब्राहम्ण होना भी संदिग्ध है (शूद्रों की खोज) अपितु डा 0 साहब '' शूद्रो की खोज '' में जो साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं उनसे तो '' मनु '' क्षत्रिय शूद्र (सुदास वंशज) ठहरता है।

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