यह सही है कि आरक्षण सामाजिक भेदभाव को मिटाने के लिए एक सकारात्मक भेदभाव के तौर पर है लेकिन समता लाने का वही एक पर्याप्त औजार नहीं है।
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हज़ारों सालों से उन्होने अपने प्रभुत्व का जो लाभ लिया उस की ख़ानापूरी एक सकारात्मक भेदभाव (आरक्षण) के ज़रिये की जा रही है जिससे एक दूसरी सूरत पैदा हो रही है।
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हज़ारों सालों से उन्होने अपने प्रभुत्व का जो लाभ लिया उस की ख़ानापूरी एक सकारात्मक भेदभाव (आरक्षण) के ज़रिये की जा रही है जिससे एक दूसरी सूरत पैदा हो रही है।
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निकोला सार्कोज़ी ने यह भी प्रस्ताव रखा था कि देश में युवाओं में बेरोज़गारी कम करने के लिए सकारात्मक भेदभाव यानी आरक्षण हो यानी बेरोज़गारों को मदद दी जाए जिससे वे अपने पैरों पर खड़े हो सकें.
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अब कई राजनीतिक दल प्रोन्नतियों में आरक्षण को 2014 के लोकसभा चुनाव के चश्मे से देखने की कोशिश कर रहे हैं. </span></span></p>< p class=“MsoNormal”><span style=“font-size: small;”>इसमें कोई शक नहीं कि दलितों और आदिवासियों को आज भी सकारात्मक भेदभाव की बेहद आवश्यकता है.
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ओबीसी का कॉलम जोड़ने से सकारात्मक भेदभाव (पॉजिटिव डिस्क्रीमिनेशन) के सिद्धांत पर अमल के रास्ते में खड़ी की जा रही बाधाओं का अगर हल निकल सकता है, तो जातीय गणना को उससे ज्यादा व्यापक बना देने का आखिर उद्देश्य क्या है?
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ओबीसी का कॉलम जोड़ने से सकारात्मक भेदभाव (पॉजिटिव डिस्क्रीमिनेशन) के सिद्धांत पर अमल के रास्ते में खड़ी की जा रही बाधाओं का अगर हल निकल सकता है, तो जातीय गणना को उससे ज्यादा व्यापक बना देने का आखिर उद्देश्य क्या है?
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रिपोर्ट के मुताबिक विधेयक के अनुच्छेद ३ (इ) में देश के नागरिकों को समूह में बनता गया है | समूह के लिए विशेष कानून बनाने की बात है | समूह का सीधा मतलब धार्मिक अल्पसंख्यकों विशेषकर मुस्लिमों और ईसाईयों से है | भाषाई अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जातियों और जनजातियों को समूह में गुप्त मंशा छिपाने के लिए रखा गया है | यह विधेयक सकारात्मक भेदभाव के सिद्धांत पर नहीं बल्कि नाजीवादी मान्यता और दर्शन पर आधारित है | रिपोर्ट के अनुसार यह हिंदुओं के प्रति आक्रामक, संकीर्ण और नस्लवादी दृष्टिकोण रखता है |