अनुभव के सत् य को किसी शाश् वतता में पकड़ने का मोह करने वालों में वे कभी नहीं रहे ।............... कुछ ' भद्रजन ' उनके भाषागत और विषयगत ' भदेसपन ' से भी बिदकते रहे ।ऐसे ' भद्रों ' को उन् होंने अपनी कविता से यह तमीज़ देने में कोताही नहीं बरती कि ' भद्र ' और ' भद्दा ' की सगोत्रता का कुछ अन् दाजा़ तो उन् हें हो ही सके ।