वास्तव में साल दर साल खाद्यान्नों, दालों और फलों की पौष्टिकता सघन कृषि व्यवस्था के कारण और अधिक गिर गई है।
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वास्तव में साल दर साल खाद्यान्नों, दालों और फलों की पौष्टिकता सघन कृषि व्यवस्था के कारण और अधिक गिर गई है.
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हरित क्रांति के दौरान सघन कृषि व्यवस्था लागू करने, रासायनिक खादों और कीटनाशकों पर निर्भरता बढ़ने के बाद ही भोजन से पौष्टिकता गायब हुई है।
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हरित क्रांति के दौरान सघन कृषि व्यवस्था लागू करने, रासायनिक खादों और कीटनाशकों पर निर्भरता बढ़ने के बाद ही भोजन से पौष्टिकता गायब हुई है.
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सघन कृषि में पर्याप्त मात्रा में संतुलित रूप में उर्वरकों का प्रयोग न होने से एक सीमा तक उत्पादन बढ़ने के बाद उपज स्तर में स्थिरता सी आ गई है।
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जंगल कट जाने से भू-क्षरण अधिक होने लगा है. एक आकलन केअनुसार सन् १९८०-८१ में सघन कृषि कार्यक्रम के तहत भूमि से १ करोड़ ८०लाख टन पोषक तत्व खीटे गये और उसके बदले में किसान केवल १ करोड़ १० लाखटन ही पोषक तत्व लौटा पाया.
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कृषि विष्वविद्याालय के कुलपति डा के एस खोखर ने कहा है कि खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाना आवष्यक है और सघन कृषि तथा उर्वरकों के असतुलित प्रयोग से क्षीण हुये भू स्वास्थ्य के चलते पहले से ही कृषि पैदावार में ठहराव की स्थिति हैं आज हिसार में मृदा स्वास्ळ एवं सभन्वित पोषक तत्व प्रबंधन विषय पर एक सगोष्ठी का उद्घाटन करते हुये डा खोखर ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये सरकार ने 300 करोड़ रूपये की व्यवस्था की है।