प्रसिद्ध आंचलिक कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु ने अपनी कृति परती परिकथा में कोसी के रौद्र रूप तथा इसके कारण होने वाले विनाश और निर्माण को सजीव ढंग से प्रस्तुत किया है।
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व्यक्त करने के लिए उन्होंने जैसी भाषा का प्रयोग किया है, उसे और सजीव ढंग से चित्रित करने के लिए शेखर के आस-पास की प्रकृति, सामान या व्यक्ति को व्यवहार तक को भी प्रयोग किया है।
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यह केवल सजीव ढंग से यही स्पष्ट करने के लिये है कि अवमान अधिकारिता के इस पहलू की वास्तविक प्रकृति अस्थिर, अकाल्पनिक-विभिन्न मामलों में और उसी न्यायालय में विभिन्न न्यायाधीशों द्वारा भिन्न-भिन्न ढंग से प्रयोग किये जाने योग्य है (और इसीलिये वास्तव में प्रयोग किया गया है) ।
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इस कहानी में किस प्रकार से किट् टी को पाला गया और वह परिवार में अपनी जगह बना पायी तथा किस प्रकार से वह परिवार की शुभकारिणी और परिवार के सदस् यों की आत् मीय बन जाती है इस समग्र घटनाक्रम को उपन् यास लेखक डॉ 0 दिनेश पाठक शशि ने बड़े ही मनोवैज्ञानिक धरातल पर सजीव ढंग से उकेरा है।
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ध्यान देने योग्य बात है कि कई बार काल्पनिक प्रेम से अधिक असरकारी होती है वास्तविक बिछोह से उपजी रचना, क्योंकि किसी के ' होने ' के मायने बेहतर समझ में आते हैं उसके ' न होने ' की स्थिति में ही. क्या ' खो गया ' है का आख्यान उस खोये हुए के महत्त्व को सजीव ढंग से ' मूर्तिमान ' बना देता है. ”
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कोई प्रसंग छिड़ जाने पर बनारस की यादों की लडियों पर लडियाँ उन दोनों कवि-मित्रों की बातें में ऐसे झलमलाकर प्रकट हो रही थीं और त्रिलोचनजी इतने सजीव ढंग से रस ले-लेकर वे विगत प्रसंग सुना जा रहे थे कि लगता था, वर्तमान से निकलकर मैं इतिहास के उन बेछोर फैले हुए बरामदों में चला आया हूँ, जहाँ मिठास में पगे दिन और पानी पर तैरती सुनहली संध्याएँ होती हैं और बातों के ओर-छोर कभी नहीं मिलते।
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कोई प्रसंग छिड़ जाने पर बनारस की यादों की लडियों पर लडियाँ उन दोनों कवि-मित्रों की बातें में ऐसे झलमलाकर प्रकट हो रही थीं और त्रिलोचनजी इतने सजीव ढंग से रस ले-लेकर वे विगत प्रसंग सुना जा रहे थे कि लगता था, वर्तमान से निकलकर मैं इतिहास के उन बेछोर फैले हुए बरामदों में चला आया हूँ, जहाँ मिठास में पगे दिन और पानी पर तैरती सुनहली संध्याएँ होती हैं और बातों के ओर-छोर कभी नहीं मिलते।
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भाई वह क्या खूब लिखते हो बड़ा सुन्दर लिखते हो लेखक ने बड़े ही सजीव ढंग से अपने ज्ञान को शब्दों कि माला में पिरोया है इसमें ऐसा कुछ भी नहीं जो गलत या निंदनीय हो फिर भी कुछ लोग फूलों में सिर्फ कांटे ही ढूँढ़ते हैं और रही बात जीव हत्या कि तो-भगवान् राम चन्द्र जी जब हिरन का शिकार करते हैं तो जीव हत्या नहीं होती भगवान् के बाप दशरथ श्रवण कुमार कि हत्या कर देता है वो भी गलत नहीं है बस गलत है तो मुसलमानों के द्वारा किया हुआ हर कार्य