आप कहेंगे, इसमें कौन सी खास बात है, जब भी कोई सफेदपोश अपराधी पकड़ा जाता है और पुलिस उससे पूछताछ शुरू करती है तो या तो उसके सीने में दर्द उठता है या उसकी याददाश्त धोखा दे जाती है।
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तेजपाल एक सफेदपोश अपराधी है कल तक कितनी बड़ी बड़ी बातें करता था अब गोवा पुलिस ढूंढने निकल पड़ी है तो पलट रहा है कायर कहीं का! डरपोक कहीं का! पुलिस के हत्थे चड रहा है तो अपना कमीनापन भी दिखा रहा है!
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थाने में बैठे सभी लोगों को थानेदार समझ लिया जाए तो अनर्थ ही हो जाएगा, क्योंकि भले ही वहॉ अधिक समय थानेदार की उपस्थिति रहती हो, परंतु कभी वहॉ एस पी, डी एस पी और कभी सफेदपोश अपराधी भी बैठे हो सकते हैं।
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थाने में बैठे सभी लोगों को थानेदार समझ लिया जाए तो अनर्थ ही हो जाएगा, क्योंकि भले ही वहॉ अधिक समय थानेदार की उपस्थिति रहती हो, परंतु कभी वहॉ एस पी, डी एस पी और कभी सफेदपोश अपराधी भी बैठे हो सकते हैं।
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इस सिलसिले में एक दिलचस्प बात यह है कि सफेदपोश अपराधी प्रवृति के राजनेता जो स्वयं मंत्री या पूर्व मंत्री होते हैं पर्दे के पीछे से सारे अपराधों को इतनी होशियारी से संचालित करते हैं कि आम लोगों को उन पर जरा भी शक नहीं होता है ।
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यह कविता उत्तर भारतीय समाज में तेजी से बेरोजगार होती जा रही उन बेसहारा स्त्रियों के दुःख, शोषण, मामूली से सपनों और सबसे बढ़कर जिजीविषा को हमारे सामने लाती है, जिन्हें सफेदपोश अपराधी पुरुषों ने अपने जैसा बना लिया है और वह सुरक्षा कवच दिया है कि बस्ती का कोई आदमी उनकी तरफ़ आँख उठाकर देखने की भी हिम्मत नहीं कर पाता।
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बात मुम्बई ताज होटल की हो रही थी, तो इसकी कडवी और नंगी सच्चाई यह है कि ताज होटल जैसे आश-ओ-आराम उपलब्ध करवाने वाले आधुनिक होटलों में सांसद, विधायक, आईएएस, आईपीएस, कार्पोरेट मीडिया के लोग, क्रिकेटर, ऐक्टर, सारे उोगपति, पंँूजीपति, सफेदपोश अपराधी आदि बडे-बडे लोग न मात्र रुकते ही हैं, बल्कि सभी प्रकार की काली-सफेद डील भी इन्हीं होटलों में होती हैं।
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मुरैना के पुलिस अधीक्षक डॉ हरी सिंह यादव द्वारा कल तथाकथित डकैती की योजना बनाते तथाकक्थित डकैतों की गिरफतारी पर समूची चम् बल को डकैत और चम् बल की संस् कृति को डकैत संस् कृति कहने पर चम् बल के लोग भड़क गये हैं, साथ ही पुलिस अधीक्षक द्वारा पुलिस की बुराई / निन् दा करने वालों को सफेदपोश अपराधी और डकैतों का सहयोगी साथी बताने पर भी लोगों का गुस् सा चरम पर है ।
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जिन लोगों को राजनीति में आना चहिये था उनकी जगह ' गुंडों ' और ' अपराधियों ' को दी गयी क्योंकि वह नेताओं के लिए बौद्धिक कठिनाई नहीं पैदा कर सकते थे, पर जो कुछ उन्होंने पैदा किया वह बौद्धिक कठिनाई से ज्यादा खतरनाक हुआ ' इस दल से उस दल की आवाजाही ' इनके चलते स्वाभाविक हितैषी अलग होते गए और इनकी संख्या दलबदलुओं के रूप में बढ़ती गयी और ये सफेदपोश अपराधी यादवों की राजनैतिक विरासत को निगलते गए.