सफेद छड़ी को डॉ. रिचार्ड हूवर ने तैयार किया था जिस कारण इसे हूवर छड़ी के नाम से जाना जाता है।
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लेकिन रिचार्ड हूवर ने दृष्टिबाधित लोगों को रास्ते में पड़ी वस्तुओं व अवरोधों की पहचान करने के लिए सफेद छड़ी की परिकल्पना की थी।
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दृष्टिहीनों के पुनर्वास में, साइटेड गाइड तकनीक, सफेद छड़ी का प्रयोग, ब्रेल भाषा का लिखना और पढ़ना, और बिना दृष्टि के घरेलू कार्य करना, को सीखना सम्मिलित हैं।
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उसके बाद दृष्टिबाधा के प्रति लोगों को संवेदनशील बनाने और सफेद छड़ी के बारे में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से विश्व के अन्य देशों में भी इस दिवस को मनाया जाने लगा।
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लेकिन आज स्थिति यह है कि जरूरतमंद बच्चों के लिए सफेद छड़ी, ब्रेल लिपि की पाठ्यपुस्तकें जैसी अत्यधिक बुनियादी चीजें भी उपलब्ध नहीं हैं और प्रशिक्षित शिक्षकों की भी बहुत कमी है।
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दृष्टिहीनों के पुनर्वास में, साइटेड गाइड तकनीक, सफेद छड़ी का प्रयोग, ब्रेल भाषा का लिखना और पढ़ना, और बिना दृष्टि के घरेलू कार्य करना, को सीखना सम्मिलित हैं।
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6 अक्तूबर, 1964 को अमेरिकी सरकार द्वारा 15 अक्तूबर को सफेद छड़ी दिवस के रूप में मनाए जाने के निर्णय के बाद से विश्व भर में इस दिवस को मनाए जाने का सिलसिला चल रहा है।
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सदियों से ही दृष्टिहीन व्यक्ति चलन उपकरण के तौर छडियों का प्रयोग करते आ रहे हैं लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के बाद सफेद छड़ी की परिकल्पना के बाद दृष्टिहीनों के सुविधाजनक चलन में बड़ा बदलाव आया है।
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अंतरचक्षु के अंतर्गत पहला काम यही किया जाता है कि आंख वाले लोगों को, खासतौर पर ऊबड़खाबड़ और रुकावटों वाले रास्ते पर आंखों पर पट्टी बांधकर एक सफेद छड़ी और आवाज के सहारे चलने का अनुभव कराया जाता है।
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जिनमें ब्रेल, कम् प् यूटर, अग्रेंजी, व्यक्तित्व विकास की कक्षाओं के अलावा दैनिक जरूरत की वस्तुएं जैसे सफेद छड़ी, टांकिंग बुक् स, सीडी, घड़ी, ब्रेल स् लेट, ब्रेलर, ब्रेल में किताबें आदि भी उपलब् ध हों।