अभियुक्तगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया है कि अभियुक्तगण के उपर जो सबूत का भार था, वह इस तहरीर में कथित कथनो से अभियोजन पक्ष पर सिफ्ट हो जाता है।
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इस तथ्य का कि अभियुक्त वादी का मजदूर था, सबूत का भार अभियुक्त पर होने के बाद भी ऐसी कोई साक्ष्य उसकी ओर से प्रस्तुत नहीं की गयी कि, उसने वादी के साथ मजदूरी में कौन सा काम किया।
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वाल्यूम शार्ट नोट 1999 / की ओर ध्यान आकर्षित कर निवेदन किया गया कि जिस पक्षकार के पास सर्वोत्तम साक्ष्य उपलब्ध हो, भले ही उस पर सबूत का भार न हो तो भी सर्वोत्तम साक्ष्य पेश नहीं की हो तो ' एडवर्स इन्फ्रेंस ” निकाला जाना चाहिए।
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लास्ट सीन की साक्ष्य के आधार पर सबूत का भार अभियुक्त पर था कि वह स्पष्ट करता कि मृतक पर ये चोटें कैसे आयी, इस तथ्य पर भी अभियुक्त का धारा. 313 दं0प्र0सं0 के बयानों में कुछ न कहना तथा कोई साक्ष्य न देना भी अभियुक्त के लिए घातक है।
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अतः ऐसी स्थिति में सबूत का भार अभियुक्तगण के उपर है कि वे यह सिद्ध करें कि उनके द्वारा मृत्यु से तुरन्त पूर्व दहेज की मांग नहीं की गयी तथा यह सिद्ध करने का भार भी अभियुक्तगण पर है कि वे यह साबित करें कि श्रीमती नीरा की मृत्यु अप्राकृतिक परिस्थितियों में नहीं हुई, बल्कि प्राकृतिक कारणों से हुई।
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इसके विपरीत विद्वान जिला शासकीय अधिवक्ता फौजदारी के द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया है कि अभियुक्तगण की ओर से जो अपना सबूत का भार उतारने के लिये उपरोक्त बयान तहरीरी प्रस्तुत किये गये हैं, उनमें कथित कथन विश्वसनीय नहीं है और और जो तहरीर दिनांक 25-06-2005 को अभियुक्त रामपालसिंह ने थाने पर दी है, वह केवल अपने बचाव के उद्देश्य से दी गयी है तथा बयान तहरीरी में जो कथन अभियुक्तगण की ओर से कहे गये हैं, वह केवल अपने बचाव के उद्देश्य से कहे गये हैं।