ऐसे कार्यक्रम और ऐसे निर्माता फिर भी यकीन दिलवाते हैं कि सब कुछ खत्म नहीं हुआ है | देखा नहीं है लेकिन कोशिश करूँगा कि इनकी डीवीडी मिल जाए | हम जैसों का तो टीवी से मोहभंग ही निजी चैनल्स के आने के बाद हुआ है | खुलेपन, सांस्कृतिक उदारता के नाम पर जितना कूड़ा कचरा परोसा जा सकता है, परोस रहे हैं | मनोज कुमार जी के कमेन्ट से पूर्णतः सहमत, ऐसे आलेख ब्लोगिंग के लिए मील के पत्थर हैं |