झा साहब जब किसी विषय पर व्याख्यान देने लगते तो महसूस होता थ कि आप एक ऐसी नाव में बैठे हैं जिसकी पतवार ठीक दिशा में लगी हुई है और जिसका खेवनहार नाव को समगति से खेता आपको ४५ मिनट के निश्चित घाट पर उतार देगा।
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झा साहब जब किसी विषय पर व्याख्यान देने लगते तो महसूस होता थ कि आप एक ऐसी नाव में बैठे हैं जिसकी पतवार ठीक दिशा में लगी हुई है और जिसका खेवनहार नाव को समगति से खेता आपको ४ ५ मिनट के निश्चित घाट पर उतार देगा।
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पर इन की कमी सोमा को नहीं खल रही थी, और उसे कुछ अचंभा भी हो रहा था कि स्मृति में उसके कॉलेज के दिन इतने शांत और एक-रस हो गये हैं-एक-रस अच्छे ही अर्थ में, बुरे अर्थ में नहीं ; फिर भी एक-रस, समगति से चलनेवाले और शांत।