लेकिन इस प्रक्रिया में कवि को खुद को बार-बार समझाना बुझाना पड़ता है “मेरा दिल गमगीं है तो क्या, गमगीं ये दुनिया है सारी” और “ये दुख तेरा है न मेरा, हम सब की जागीर है प्यारी” इसलिए “क्यूं न जहां का गम अपना लें, बाद में सब तदबीरें सोचें”।
12.
इंद्र, अग्नि, वरुण, यम इन चार देवां में से किसी को पतिरूप में वरण करने के लिए नल का दूत बनकर दमयंती के यहाँ जाना, उसे समझाना बुझाना और दूतकार्य में असफल होना-इतनी ही कथा का वर्णन 5 से 9 सर्ग तक दसवें सर्ग से सोलहवें सर्ग तक, सांगोपांग, दमयंती स्वयंवर, नलवरण और विवाहादि का विवरण दिया गया है।