उनकी सद्य: प्रकाशित कृति ‘ समाज-भाषाविज्ञान: रंग-शब्दावलीः निराला काव्य ' (2009) उनकी गहन शोध दृष्टि और अभिनव आलोचना प्रणाली का जीवंत प्रमाण है।
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उल्लेखनीय है कि समाज-भाषाविज्ञान भाषा को सामाजिक प्रतीकों की ऐसी व्यवस्था के रूप में देखता है जिसमें निहित समाज और संस्कृति के तत्व उसके प्रयोक्ता की अस्मिता का निर्धारण करते हैं।
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यह कृति समाज-भाषाविज्ञान के सैद्धांतिक पहलुओं की हिंदी भाषा समाज के संदर्भ में व्याख्या करते हुए रंग-शब्दावली के सर्जनात्मक प्रयोग के निकष पर निराला के काव्य का विश्लेषण प्रस्तुत करती है।
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कविता वाचक्नवी की शोधकृति “ समाज-भाषाविज्ञान: रंग-शब्दावली: निराला-काव्य ” को लोकार्पित करते हुए उन्होंने आगे कहा कि यह पुस्तक अत्यन्त चुनौतीपूर्ण विषय पर केन्द्रित तथा शोधकर्ताओं के लिए मार्गदर्शक है।
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२७ जनवरी को अपनी पुस्तक समाज-भाषाविज्ञान (रंग-शब्दावली: निराला-काव्य) के (तथा अन्य 3 पुस्तकों के) लोकार्पण समारोह में सम्मिलित होने के लिए कल सुबह तड़के इलाहाबाद की यात्रा पर जा रही हूँ।
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२७ जनवरी, २00९ को अपनी पुस्तक समाज-भाषाविज्ञान (रंग-शब्दावली: निराला-काव्य) के (तथा अन्य 3 पुस्तकों के) लोकार्पण समारोह में सम्मिलित होने के लिए कल सुबह तड़के इलाहाबाद की यात्रा पर जा रही हूँ।
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पुस्तक चर्चा: डॉ. ऋषभदेव शर्मा समाज-भाषाविज्ञान: रंग शब्दावली: निराला काव्य* वाक् और अर्थ की संपृक्तता को स्वीकार करने के बावजूद प्रायः दोनों का अध्ययन अलग-अलग खानों में रखकर अलग-अलग कसौटियों पर किया जाता है।
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२ ७ जनवरी, २ 0 0 ९ को अपनी पुस्तक समाज-भाषाविज्ञान (रंग-शब्दावली: निराला-काव्य) के (तथा अन्य 3 पुस्तकों के) लोकार्पण समारोह में सम्मिलित होने के लिए कल सुबह तड़के इलाहाबाद की यात्रा पर जा रही हूँ।
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कुछ प्रमुखकृतियाँ (1)-मैं चल तो दूँ (कविता पुस्तक) 2005, (2)-समाज-भाषाविज्ञान: रंग-शब्दावली: निराला-काव्य (शोध / समीक्षा) 2009, (3)-कविता की जातीयता (शोध / समीक्षा) 2009, (4)-महर्षि दयानन्द और उनकी योगनिष्ठा (शोध पुस्तक) 1984
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‘ समाज-भाषाविज्ञान: रंग-शब्दावलीः निराला काव्य ' में लेखिका ने समाज-भाषाविज्ञान के सिद्धांत और इतिहास की व्याख्या करते हुए निराला के काव्य में प्रयुक्त रंग शब्दावली का विवेचन किया है और हिंदी भाषा में निहित रंग संसार की शाब्दिकता का गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया है।