सम्पत्तिशास्त्र की विश्लेषण पद्धति लेखन शैली और भाषा में एक तरह की संवादधर्मिता है जो पाठकों को आकर्षित करती है, उन्हें आत्मीय बनाती है.
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जिसके चलते करोड़ों किसान अकाल के ग्रास बने. “ सम्पत्तिशास्त्र ” और “ देश की बात ” दोनों में इस दारुण प्रक्रिया का सविस्तार वर्णन है.
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अंग्रेजी में भले ही वैसी आलोचना प्रकाशित नहीं हुई हो लेकिन सखाराम गणेश देउस्कर की देशेर कथा में ब्रिटिश साम्राज्यवाद की आलोचना “ सम्पत्तिशास्त्र ” से अधिक व्यापक, गहरी और प्रभावशाली है.
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पाण्डेय जी ने प्रस्तावना में लिखा है कि द्विवेदी जी ने “ सम्पत्तिशास्त्र ” में भी इस भ्रामक मान्यता का खंडन किया है कि मुसलमानों के शासनकाल में इस देश की सम्पत्ति का नाश हु आ.
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सम्पत्तिशास्त्र “ कि प्रस्तावना में वह लिखते हैं कि ” संपत्ति शास्त्र ” विशेषज्ञों के लिए लिखी गई पुस्तक नहीं है, इसमें सरल बात को जटिल बनाकर कहने की जगह जटिल से जटिल बात को सरल-सहज रूप में कहने की कोशिश है.
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सम्पत्तिशास्त्र “ की प्रस्तावना में भी पाण्डेय जी लिखते हैं कि सम्पत्तिशास्त्र के लेखक के मन में सबसे अधिक आक्रोश और बेचैनी भारत के किसानों की तबाही और कृषि की बर्बादी को लेकर है इसलिए पुस्तक में सबसे अधिक चर्चा कृषि और किसान जीवन की समस्याओं की है. ”
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सम्पत्तिशास्त्र “ की प्रस्तावना में भी पाण्डेय जी लिखते हैं कि सम्पत्तिशास्त्र के लेखक के मन में सबसे अधिक आक्रोश और बेचैनी भारत के किसानों की तबाही और कृषि की बर्बादी को लेकर है इसलिए पुस्तक में सबसे अधिक चर्चा कृषि और किसान जीवन की समस्याओं की है. ”
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जैसे सखाराम गणेश देउस्कर बांग्ला नवजागरण को मराठी नवजागरण से. “ ” सम्पत्तिशास्त्र “ की प्रस्तावना ” देश की बात “ की प्रस्तावना में पाण्डेय जी ने लिखा है कि ” देउस्कर भारतीय नवजागरण के ऐसे विचारक हैं जिनके चिंतन और लेखन में स्थानीयता और अखिल भारतीयता का अद्भुत संगम हुआ है.
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प्रभाव और लोकप्रियता की दृष्टि से देशेर कथा जैसी क्रन्तिकारी किताब शायद ही किसी भारतीय भाषा में स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान लिखी गई हो इसलिए सम्पत्तिशास्त्र के महत्त्व की वास्तविकता ठीक ढंग से समझने के लिए उसे 1940 में छपी रजनी पामदत्त की किताब “ आज का भारत ” से नहीं बल्कि 1904 में छपी सखाराम गणेश देउस्कर की ”
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पाण्डेय जी ने देउस्कर के दृष्टिकोण की समकालीन प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए लिखा है कि आज के सांप्रदायिक उभार के समय में “ देश की बात ” साम्प्रदायिकता के स्रोतों और रूपों की जानकारी देकर पाठक को सांप्रदायिक सोच से बचने में मदद करेगी. द्विवेदी जी के “ सम्पत्तिशास्त्र ” का अध्ययन भी इस लिहाज से आँख खोलने वाला है.