यानि वर्चस्वी वर्ग का यशोगान करना, अपनी रचनाओं में उनकी उदारता, दयाध्र्मिता, मानवता का गुणगान करके ठकुरसुहाती करना और बदले में पुरस्कार ', सम्मान चिह्न, ' भव्य पदवियां ' व उपाध्यिां ' ं हासिल करना और समाज की मुख्यधरा से बाहर यानि हाशिये पर ध्केल दिए गए दबे-कुचले, वंचित-पीड़ित-दलित लोगों की ओर से मुंह मोड़ लेना।