इसे इस सन्दर्भ में कहा गया है कि यदि गुरु के किसी यंत्र या रत्न को धारण करना है तथा यदि गुरु किसी पाप ग्रह के साथ या प्रभाव में है तों उसके लिये मघा नक्षत्र के ठीक पहले आने वाली नक्षत्र अश्लेषा का अनुगमन करने वाली नक्षत्र पुष्य के दूसरे अर्थ वाली अर्थात पुच्छ भाग या उस रत्न या यंत्र के पृष्ठ भाग को सम्मुख होना चाहि ए.