ख्यालों की सरिश्त से तरबतर आलम तकता है परेशान होकर कोई रुककर किसी के हाथ भी तो नहीं सहलाता मृदुलता व स्नेह वर्षा से मन को स्पर्श भी तो नहीं करता पहचानना तो दूर …
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तोहीद की अमानत, सीनों में है हमारे, आसां नहीं मितान, नामों-निशान हमारा. ७. अन्य धर्मों का भी आदर (राम) इस देश में हुए हैं हजारों मलक-सरिश्त (१) १.
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एक भूल जिसे दुनिया में बार बार दोहराया गया इस देश में हज़ारों ‘ मलक सरिश्त ‘ अर्थात निष्पाप और एक ईश्वर के प्रति समर्पित लोग हुए हैं, श्री रामचन्द्र जी को अल्लामा इक़बाल ने उन्हीं लोगों में से एक बताया है।
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मोमिन देखता है खुदा के नूर से एक हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ही क्या, आज किसी भी ‘ मलिक सरिश्त ‘ आदमी की जीवनी पढ़ लीजिए जिसे उनके मानने वालों ने ही लिखा हो, इस तरह की बातें आपको सब जगह मिल जाएंगी।
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ख्यालों की सरिश्त से तरबतर आलम तकता है परेशान होकर कोई रुककर किसी के हाथ भी तो नहीं सहलाता मृदुलता व स्नेह वर्षा से मन को स्पर्श भी तो नहीं करता पहचानना तो दूर…अंधी-दौड़ के साथी सब अपने होकर भी मुख फेर लेते हैं …
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अब जो साहित्य उपलब्ध है, उसमें ये दोनों बातें मौजूद मिलती हैं लेकिन कोई भी ‘ अहले नज़र ‘ इनसे परेशान नहीं होता क्योंकि उसे ज़माने के दस्तूर का पता होता है कि वह हमेशा से ‘ मलक सरिश्त ‘ लोगों के साथ यही तो करता आया है।
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जहाँ न तेरी महक हो उधर न जाऊँ मैं मेरी सरिश्त सफ़र है गुज़र न जाऊँ मैं मेरे बदन में खुले जंगलों की मिट्टी है मुझे सम्भाल के रखना बिखर न जाऊँ मैं मेरे मिज़ाज में बे-मानी उलझनें हैं बहुत मुझे उधर से बुलाना जिधर न जाऊँ मैं कहीं पुकार न ले गहरी वादियों का …
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श्री रामचन्द्र जी का ज़माना बहुत पुराना है बल्कि ठीक से तय ही नहीं किया जा सकता है कि वे कब और किस जगह पैदा हुए थे? ज्ञान पाने के लिए चाहिए एक निष्पक्ष विवेचना उन्हें समझने के लिए हम दूसरे ‘ मलक सरिश्त ‘ लोगों का इतिहास देखते हैं तो हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की ज़िन्दगी पर नज़र जाती है।