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सर्जनात्मक कल्पना उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
11.अपनी सर्जनात्मक कल्पना के माध्यम से मनुष्य बेहतर दुनिया बनाने के लिए तब से प्रयत्नशील है, जब से उसने भाषा की खोज करके सामाजिक जीवन का आरम्भ किया।

12.स्वानुभूति, सर्जनात्मक कल्पना तथा गहरी मानवी चिन्ता के एकात्म से उपजे ये गीत अपने कथ्य में जितने पारदर्शी हैं, उसके निहितार्थों में उतने ही सारगर्भित भी।

13.अपनी सर्जनात्मक कल्पना के माध्यम से मनुष्य बेहतर दुनिया बनाने के लिए तब से प्रयत्नशील है, जब से उसने भाषा की खोज करके सामाजिक जीवन का आरम्भ किया।

14.सर्जनात्मक कल्पना का विश्लेषण करते हुए प्रतिभाशाली हेल्महोल्त्स (Helmholtz), प्वाँकार (Poincare), ग्रैहम वैलेस (Graham Wallas) आदि ने इसकी चार अवस्थाएँ बताई हैं-तैयारी (प्रिपरेशन), निलायन (इन्क्यूबेशन), उच्छ्वसन (इंस्पिरेशन) तथा प्रमापन (वेरिफ़िकेशन)।

15.पुराने हिन्दी फिल्मों में प्रेमी युगलों के मिलन के दृश्यों में प्रयोग किए गए बिंबों और प्रतीकों से दर्शकों को जो रसानुभूति प्राप्त होती है, उसमें भी उनकी सर्जनात्मक कल्पना की शक्ति ही कार्यशील रहती है।

16.दक्षिण एशिया के अग्रणी समाज चिंतक आशीष नंदी से संवाद गाँव के बारे में सर्जनात्मक कल्पना के निरंतर हो रहे हास, नगरीय औद्यौगिक यूटोपिया और विकास की सीमाओं और आदिवासी जीवन पद्धति और हिंसा आधारित विचारधारा के इंटरफेस पर केंद्रित है.

17.दक्षिण एशिया के अग्रणी समाज चिंतक आशीष नंदी से संवाद गाँव के बारे में सर्जनात्मक कल्पना के निरंतर हो रहे हास, नगरीय औद्यौगिक यूटोपिया और विकास की सीमाओं और आदिवासी जीवन पद्धति और हिंसा आधारित विचारधारा के इंटरफेस पर केंद्रित है.

18.किसी कविता को पढ़ते हुए पाठक अपने मानस में कवि द्वारा संकेतित बिंबों-प्रतीकों के आधार पर मूल दृश्य और भाव तक पहुंचने की कोशिश के क्रम में एक पुनर्सृष्टि करता है और यह प्रक्रिया सर्जनात्मक कल्पना की सहायता से ही संभव हो पाती है।

19.पदुमलाल बख्शी अपने को आलोचक नहीं मानते और विनम्र भाव से इसे स्वीकार करते हैं कि चूंकि हर पाठक आलोचक होता है और उसे भी किसी श्रेष्ठ रचना के स्तर तक उठने के लिये सर्जनात्मक कल्पना एवं चयन विवेक की आवश्यकता होती है, अभ्यास के परिणाम स्वरूप वह स्वयं भी रचना के गुण-दोषों की मीमांसा की क्षमता अर्जित कर लेता है।

20.पुस्तक समीक्षा: एक और क्रौंच वध! पुस्तक समीक्षा: एक और क्रौंच वध वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं मानवीय संवेदना का संतुलन प्रोफेसर रामदेव शुक्ल,विभागाध्यक्ष (निवर्तमान), हिन्दी विभाग, गोरखपुर विश्वविद्यालय (उ0प्र0) अपनी सर्जनात्मक कल्पना के माध्यम से मनुष्य बेहतर दुनिया बनाने के लिए तब से प्रयत्नशील है, जब से उसने भाषा की खोज करके सामाजिक जीवन का आरम्भ किया।

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