महाभारत में सर्पदंश से परीक्षित की मृत्यु और इसके प्रतिशोध के लिए जनमेजय द्वारा ‘ सर्पयज्ञ ' के आयोजन का उपाख्यान सर्वविदित है।
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जनमेजय ने सांपों से क्रुद्ध होकर इस सर्पयज्ञ को इसलिए कराया था क्योंकि तक्षक नाग के काटने से उनके पिता परीक्षित की मृत्यु हो गयी थी।
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जनमेजय ने सांपों से क्रुद्ध होकर इस सर्पयज्ञ को इसलिए कराया था क्योंकि तक्षक नाग के काटने से उनके पिता परीक्षित की मृत्यु हो गयी थी।
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जनमेजय ने सांपों से क्रुद्ध होकर इस सर्पयज्ञ को इसलिए कराया था क्योंकि तक्षक नाग के काटने से उनके पिता परीक्षित की मृत्यु हो गयी थी।
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उक्त प्रकरण अर्जुन के प्रपौत्र, अभिमन्यु के पौत्र, एवं परीक्षित् के पुत्र राजा जनमेजय के सर्पयज्ञ को ऋषि आस्तीक द्वारा निष्प्रभावी किये जाने से संबद्ध है ।
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इन्होने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्पयज्ञ करवाया जिसमे सर्पों के कई जातियां समाप्त हो गयी, लेकिन तक्षक जीवित बच गया.
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उक्त प्रकरण अर्जुन के प्रपौत्र, अभिमन्यु के पौत्र, एवं परीक्षित् के पुत्र राजा जनमेजय के सर्पयज्ञ को ऋषि आस्तीक द्वारा निष्प्रभावी किये जाने से संबद्ध है ।
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उक्त प्रकरण अर्जुन के प्रपौत्र, अभिमन्यु के पौत्र, एवं परीक्षित् के पुत्र राजा जनमेजय के सर्पयज्ञ को ऋषि आस्तीक द्वारा निष्प्रभावी किये जाने से संबद्ध है ।
19.
तक्षक ने परीक्षित को डसा (मारा) और परीक्षित पुत्र जन्मेजय ने बदला लेने के लिए नागवंश का संहार किया जिसे काव्यात्मक भाषा में सर्पयज्ञ का नाम दिया गया।
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युधिष्ठिर का वंश परीक्षित के पुत्र राजा जन्मेजय के आगे नहीं चला | राजा जन्मेजय ने इसी कारण विज्ञान, आधुनिकरण सम्बन्धी जितनी सूचना थी, सबको आहुति दे दी जो महान सर्पयज्ञ के नाम से याद किया जाता है |