' सर्प संसार ' की एक पिछली पोस् ट पर एक जिज्ञासु पाठक कुंदन शर्मा ने पूछा है-” सर हमारे यहां कभी-कभी एक छिपकली जैसा लेकिन वह चलता साँप जैसा जीव दिखाई देता है उसे यहाँ हमारी स्थानीय भाषा में ' सांप की मौसी ' और ' बामनी ' कहते हैं।
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“उत्साह भी बड़ा अनूठा व्यक्तित्व है, जब तक इच्छित वस्तु नहीं है तब तक ऊर्जा के उत्कर्ष पर नाचता है पर जैसे ही वह वस्तु मिल जाती है, साँप जैसा किसी बिल में विलीन हो जाता है” वाह...विलक्षण पोस्ट...उत्साहीन व्यक्ति और मुर्दे में कोई विशेष अंतर नहीं है...उत्साहहीन व्यक्ति सिर्फ चलता है जबकि मुर्दा नहीं...बस. नीरज